निविदा (Tender)

निविदा (Tender)

 

नोट - जो भी आकड़े दर्शाए है समय समय पर परिवर्तन होता रहता है, वर्तमान आकड़े के लिये रेलवे बोर्ड के LATEST ORDER देखे

 

रेलवे व्दारा भण्डार की आपूर्ति अथवा निर्माण कार्यों के लिए जो सूचनाएँ प्रकाशित की जाती है, उन्हें निविदा कहते है। निविदा या टेंडर एक प्रकार का प्रस्ताव है जो कि ठेकेदारों के व्दारा कुछ निश्चित शर्तों एवं निश्चित अवधि में किसी कार्य को करने या भण्डार की आपूर्ति करने के लिए प्रस्तुत किया जाता है।  

 

आमतौर पर सभी निर्माण कार्य करने, मरम्मत और संरक्षण या माल की सप्लाई के लिए ठेकेदारों की एजेंसी का प्रयोग किया जाता है। कोई कार्य या माल की सप्लाई का ठेका किसी ठेकेदारों को देने से पूर्व निश्चित संख्या में ऐसे ठेकेदारों को अपनी दर (जिस पर वह कार्य या माल सप्लाई कर सकते है ) भेजने के लिए कहा जाता है । इसका उद्देश्य यह है की कम से कम सबसे उपयुक्त ठेकेदार को चुना जा सके।  

 

सामान्यतः: 25000/ - रूपये से अधिक के  सभी कार्यों / सप्लाई के लिए सर्वाधिक खुले और सार्वजनिक तौर पर निविदा बुलाना चाहिए।  मूल्य अनुसूची पर आधारित मामलो में यह सीमा 50,000 /- रूपये तक बढाई जा सकती है।  

 

निम्न परिस्थितियों में सक्षम अधिकारी निविदा पध्दति के बिना ठेका दे सकता है - 

•   जब इसके लिए कारण पर्याप्त है की ऐसा करना जनता के हित में नही होगा की टेंडर बुलाकर ठेका दिया जाये।  

•  जहां ठेके की कीमत 25, 000/ - तक है और महाप्रबंधक यह समझते है की टेंडर बुलाना लाभदायक या व्यावहारिक नही है।  

•  कार्यों के ठेके जो की रेलवे पर दर सूची के आधार पर दिये जाते है, वहाँ यदि उनकी कीमत 50,000 /- रूपये तक है तो महाप्रबंधक बिना कारण लिखे टेंडर पध्दति के बिना ठेका दे सकते है।

·         अन्य सभी मामलो जहां महाप्रबंधक यह समझता है की टेंडर बुलाना उचित नही, कारण लिखने के बाद वित्त सलाहकार एवं मुख्य लेखाधिकारी को सूचनार्थ भेज सकता है। इसके लिए आवश्यक है की ठेके का परिविभाजन न हो और उचित दर स्वीकार की जाये।  

•  जब यह प्रमाणित किया जा सकता है की इसी प्रकार की वस्तु कही और जगह नही बनाई जा रही है या बेचीं जा रही है, जो की इसके बदले में इस्तेमाल की जा सके।  लेखा विभाग व्दारा ऐसे मामलो में जांच की जाती है । 

 

·     प्राप्त और  स्वीकार करने योग्य सब खोली गई निविदा की प्रभारी कार्यालय व्दारा एक तुलनात्मक विवरण बनाया जाता है।  जिसमें प्रत्येक निविदाकर्ता व्दारा प्रस्तावित दरों और अन्य शर्तों के अलावा पिछली खरीद की कीमत, शर्तों पर टिप्पणी आदि होती है।

·     इस तुलनात्मक विवरण की जाँच में लेखा विभाग की कीमत, शर्तों पर टिप्पणी आदि होती है । इस तुलनात्मक विवरण की जाँच लेखा विभाग के मनोनीत लेखाधिकारी व्दारा की जाती है, जो विवरण की पूर्ण जाँच कर सत्यापन करता है। लेखा सदस्य की सूचनार्थ एक हिमायती टिप्पणी भी तैयार की जाती है।  

·      इसके पश्चात टेंडर पर टेंडर कमेटी व्दारा विचार विमर्श किया जाता है।

·       टेंडर कमेटी का एक सदस्य उपयुक्त स्तर का लेखाधिकारी भी होता है। टेंडर कमेटी के विचार विमर्श के मिनिट्स और सिफारिश लिखित रूप में दर्ज किये जाते है, जिस पर सभी सदस्य हस्ताक्षर करते है और इसे सक्षम अधिकारी की स्वीकृति के लिए प्रस्तुत किया जाता है।  

  

·    कई बार निविदाकर्ताओ के साथ बातचीत (नेगोशिएसन ) भी की जाती है, जिससे बेहतर दर प्राप्त की जा सके। इस बातचीत में लेखाधिकारी भी सम्मिलित होता है।  

·    नियमानुसार कोई भी ठेकेदार को कार्य या माल की सप्लाई की अनुमति तब तक नही दी जाती जब तक कि संबंधित टेंडर पर सक्षम अधिकारी के व्दारा हस्ताक्षर नही किये जाते है।  

  

निविदाओ के प्रकार

1.      खुली निविदा - इस पध्दति का उपयोग किसी भी कार्य के लिए खर्च किये गये धन का अच्छा परिणाम प्राप्त करने के लिए किया जाता है। सार्वजनिक विज्ञापनों व्दारा विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में सूचनाएँ प्रकाशित की जाती है, जिससे अच्छी प्रतियोगी दरें प्राप्त होती है। सामान्यतः: 50000 रूपये से अधिक मूल्य के सभी कार्यो के लिए यह पध्दति प्रयोग में लाई जाती है , परंतु महाप्रबंधक व्दारा सार्वजनिक हित में 5 लाख रूपये तक के मूल्यों के कार्यों के लिए वित्तीय सहमति प्राप्ति के बाद सीमित निविदा की अनुमति से सकता है। विज्ञापन में दी गई तिथि समय एवं स्थान पर निविदा समिति व्दारा निविदा खोली जाती है और सबसे कम दर वाली निविदा मंजूर की जाती है।

 

2.    सीमित निविदा - इस पध्दति के अंतर्गत निविदा उन्हीं ठेकेदारों से आमंत्रित की जाती है, जो ठेकेदारों की अनुमोदित सूची में होजिन कार्यो की अनुमानित लागत 50 लाख रूपये  तथा महाप्रबंधक  की अनुमति से 5 लाख  तक  के लिए उपयोग में लाई जाती है।  विशेष सीमित निविदा - महाप्रबंधक व्दारा वित्तीय सहमति से अति आवश्यक कार्यो के लिए अनुमोदित सूची के ठेकेदारों में से आमंत्रित की जाती है।

 

3.    एकल निविदा - इस पध्दति में रेल प्रशासन केवल एक विशिष्ट व्यक्ति फर्म या ठेकेदार से निविदा आमंत्रित करता है। यह उस स्थिति में आमंत्रित की जाती है जब किसी ठेके की कीमत गैर एकाधिकार मद में 10 हजार रूपये कम तथा एकाधिकार मद में 50 हजार रूपये से कम हो।  

 

4.    ग्लोबल निविदा - यह पध्दति रेलवे बोर्ड अथवा भारत सरकार व्दारा अंतर्राष्ट्रीय कम्पनियों से कार्य करवाने अथवा खरीद के लिए अपनाई जाती है। इस पध्दति में महाप्रबंधक को कोई पावर नही होता है।  

 

5.    बुलेटिन निविदा - 3 लाख रूपये से कम मूल्य के भण्डार की खरीद के लिए बुलेटिन निविदा मंगाई जाती है। निविदा का प्रकाशन रेलवे व्दारा प्रकाशित मासिक बुलेटिन में किया जाता है, और जो बुलेटिन का सदस्य होता है वह निविदा भेज सकता है ।  

  

विलम्बित और देर से प्राप्त निविदा

 

विलम्बित निविदा  - जब कोई निविदा खोलने से पहले लेकिन प्राप्ति की निर्धारित तारीख और समय के बाद प्राप्त होता है तो उसे विलम्बित निविदा कहते है। ऐसी निविदा को उसी तरह निपटाया जाता है, जिस तरह पूर्व में प्राप्त निविदा निपटाई जाती है।  

देर से प्राप्त निविदा  - जब कोई निविदा, निविदा जमा कराने के दिनांक व समय के बाद तथा निविदा खोलने के पश्चात प्राप्त होती है, उसे देर से प्राप्त निविदा कहते है।

 

 नोट – 1. सभी मामलो में लाल स्याही से लिफाफों पर देर से प्राप्त या विलम्बित शब्द लिखा जाता है।

2. विलम्बित और देर से प्राप्त दोनों प्रकार के निविदा को रजिस्टर में उपयुक्त टिप्पणी दी जाती है।

3. देर से प्राप्त निविदा किसी भी परिस्थिति में स्वीकार नही की जाती है।  

 

निविदा फर्मो की कीमत

 

निविदा फर्मो का मूल्य निविदा की अनुमानित लागत के  अनुसार होती है जो निम्न है - 

 

नोट - यदि उक्त फार्म डाक से मंगाये जाते है तो 100/- रूपये अतिरिक्त प्रभार लगेगा।   

 

बयाने की राशि (अर्नेस्ट मनी) और जमानत की राशि

बयाने की राशि

·       ठेकेदारों व्दारा निविदा के साथ जो राशि जमा कराई जाती है, उसे बयाने की राशि कहते है।  

·       बयाने की राशि जमा कराने का उद्देश्य यह है कि यदि निविदा मंजूर की जाने के बाद ठेकेदारों व्दारा जमानत की राशि जमा नही कराई जाती है और समय पर कार्य प्रारंभ नही किया जाता है तो रेलवे को होने वाली हानि की भरपाई हो सके।

·       वर्तमान में अर्नेस्ट मनी अनुमानित टेंडर लागत का 2 प्रतिशत है जिसे अगले 10 रूपये पूर्णाकित किया जाता है। 10 करोड़ से अधिक राशि पर सिर्फ एक प्रतिशत है ।   

बयाना की राशि स्वीकार करना - बयाना  की राशि निम्नलिखित रूप में स्वीकार की जा सकती है - 

•      नगद रोकड़ के रूप में जमा   कराकर मनी रसीद व्दारा ।  

•      सरकारी प्रतिभूतिया, जिसमें बाजार मूल्य से 5 प्रतिशत कम पर स्टेट लोंन बांड शामिल है

•      जमा रसीदे भुगतान आदेश डिमाण्ड ड्राफ्ट और गारंटी बांड जो या तो भारतीय स्टेट बैक या किसी राष्ट्रीयकृत बैंक के हो सकते है,

•   सभी अनुसूचित बैंकों व्दारा निष्पादित गारंटी बांड या जमा की रसीदें

•    पोस्ट ऑफिस बचत बैंक में जमा

•       राष्ट्रीय बचत पत्रों में जमा

•       12 वर्षीय राष्ट्रीय रक्षा पत्र

•       दस वर्षीय रक्षा जमा,

•       राष्ट्रीय रक्षा जमा

•       यूनिट ट्रस्ट सर्टिफिकेट बाजार मूल्य से 5 प्रतिशत कम या अंकित मूल्य पर इनमे जो भी कम हो।  


जमानत की राशि

·         निविदा मंजूर होने के बाद कार्य प्रारंभ करने से पहले कार्य को सफलता पूर्वक पूर्ण करने के लिए ठेकेदारों व्दारा जो राशि जमा कराई जाती है, उसे जमानत की राशि कहते है।

·          जब टेंडर स्वीकार कर लिया जाता है और स्वीकृति पत्र जारी कर दिया जाता है, तब ठेकेदारों को एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर हेतु बुलाया जाता है। उस समय ठेकेदारों ठेके की कुल राशि का 5 प्रतिशत जमानत की राशि के रूप में बैंक गारंटी प्रस्तुत करने पर ही एग्रीमेंट हस्ताक्षर करवाये जाते है।

·          शेष 5 प्रतिशत राशि ठेकेदारों के प्रत्येक रंनिग बिल से भुगतान की जाने वाली राशि के 10 प्रतिशत की कटौती तब तक की जाती है, जब तक की वह कुल ठेका राशि के शेष 5 प्रतिशत तक न पहुँच जाये। कुल जमानत राशि 5 + 5 =10 प्रतिशत ली जाती है। 

·           यदि सफल ठेकेदार चाहे तो अर्नेस्ट मनी को जमानत की राशि में समायोजित करा सकता है।

·          यह राशि ठेकेदारों व्दारा संतोषप्रद कार्य पूरा करने के पश्चात और यदि रखरखाव की अवधि है तो उसके पूरा होने के पश्चात रेलवे के अन्य बकाया आदि का निस्तारण कर बैंक गारंटी बांड की दशा में उसे रिलीज कर दिया जाता है तथा नगद की दशा में राशि का भुगतान बिना ब्याज के ठेकेदारों को कर दिया जाता है।

 

ठेका (कांट्रेक्ट)

परिभाषा - जब दो या दो से अधिक व्यक्ति परस्पर किसी कार्य को करने के लिए एक दूसरे को सूचित करते है,  तो ऐसी लिखित सूचना को करार कहते है।  यदि ऐसा करार जिसे कानून व्दारा मान्यता प्राप्त होती तो वह ठेका बन जाता है अर्थात ठेके में दो व्यक्तियों में या फार्म के बीच किसी कार्य को करने या भण्डार की आपूर्ति से संबंधित प्रस्ताव किया जाता है वह कानूनी मान्यता प्राप्त हो, उसे ठेका कहते है।  कानून के अनुसार ठेका लिखित रूप में होना चाहिए और उसका सत्यापन गवाहों व्दारा किया जाना चाहिए।

 

 

भारतीय संविदा अधिनियम 1872 की धारा 10 के अनुसार केवल वही करार कानून व्दारा प्रवर्तर्नीय होते है जो ठेके करने के लिए सक्षम पार्टियों की मुक्त सहमति से किसी विधि सम्मत प्रतिफल के लिए और विधि सम्मत उद्देश्य से किए जाते है, जिन्हें स्पष्ट शब्दों में शून्य घोषित नही किया गया है।  यह व्यवस्था किसी ऐसे कानून के अध्याधीन होती है जिसके अनुसार ठेका लिखित रूप में होना चाहिए और उसका अनुप्रमाणन साक्षियों व्दारा किया जाना चाहिए।  

 

एक अच्छे ठेके के सामान्य सिद्धांत

 

एक अच्छे ठेके में निम्न बातों का समावेश होना आवश्यक है -

•   ठेकेदार को क्या, कहां, कब और किसकी संतुष्टि के लिए कार्य करना है कि अच्छी तरह समझ होनी चाहिए।

•   रेल प्रशासन का क्या कार्य है और किन शर्तों पर किया जाना है, कि अच्छी तरह समझ होनी चाहिए।

•   भुगतान कब, किसे कितना, किस माध्यम से, किसके लिए कहां और किस प्रकार करना है एवं भुगतान का आधार क्या रहेगा, कि जानकारी होनी चाहिए। 

•   पर्याप्त पर्यवेक्षण, सरकारी संपति की देखभाल और बाहरी हितो की सुरक्षा एवं कर्मचारियों की हितो की सुरक्षा के संबंध में ठेकेदार की जिम्मेदारी क्या होगीकि जानकारी होनी चाहिए। 

•   ठेकेदार की क्या जबाबदारी होगीकि जानकारी होनी चाहिए। 

•   ठेके के लिए मानक फर्मो का उपयोग किया जाना चाहिए और उनकी शर्तो की पहले से अच्छी तरह जाँच कर ली जानी चाहिए,

•   किसी पार्टी व्दारा ठेका शर्ते भंग करने पर अपनाई जाने वाली पध्दति क्या होगी, विवाद का निपटारा कैसे होगा,

•   ठेका कानून एवं वित्तीय सलाह के अनुसार होना चाहिए और कोई भी शर्त अनिश्चित, अस्पष्ट एवं असामान्य किस्म की नही होना चाहिए,

 •   ठेके में एक बार जिन शर्तो को शामिल किया गया है, उनको बिना कानून एवं वित्तीय सलाह के परिवर्तित नही किया जाना चाहिए,

•   ठेकेदार को सौपी गई रेलवे संपति की सुरक्षा व्यवस्था का प्रावधान किया जाना चाहिए,

•   लम्बे समय के ठेके में इस शर्त का समावेश होना चाहिए की रेल प्रशासन 6 महीने की नोटिस के करार समाप्त कर सकता है।  

•    ठेकेदार के विरुध्द उत्पन्न होने वाले सभी दावों को मंजूर या रद्द करने की शक्ति रेल प्रशासन के पास सुरक्षित रहनी चाहिए ।  

  

ठेकेदारों के प्रकार

निर्माण कार्यो के लिए ठेके तीन प्रकार के होते है - 

एक मुश्त ठेका - जब किसी कार्य के लिए एक मुश्त भुगतान पर एक निर्धारित अवधि में एक समय में पूर्ण करने के लिए जो ठेका दिया जाता है, उसे एकमुश्त ठेका कहते है। इसके अंतर्गत ठेकेदार निर्माण कार्य , सामान की सप्लाई एक निर्धारित समय में निश्चित धन राशि के करता है ।


ठेकेदार को धन प्राप्त होने पर उसकी जवाबदारी होती है की वह निर्माण कार्य या सामान की सप्लाई एक निर्धारित समय में  लिए पूरा कर के  दे ,चाहे इसके लिए उसे कितना भी काम या सामान की सप्लाई करना पड़े । 

ऐसे ठेकों में दरो या कीमतों का समझौता किया जाता है यदि बाद में निर्माण कार्य या सामान की सप्लाई के संबंध में कोई परिवर्तन किया जाता है तो एकमुश्त राशि उसी स्केल के अनुसार वृध्दि या कमी की जा सकती है।  

दर (अनुसूचित) ठेका : इस प्रकार के ठेके में एक दर निर्धारित की जाती है।  उसी निर्धारित दर पर निर्धारित अवधि तक ठेकेदार को कार्य करना होता है । ठेकेदार को भुगतान उसी दर के अनुसार किया  जाता है। इस ठेके में मात्रा और निर्धारित यूनिटों के दरो के आधार पर ठेके की राशि दर्शायी जा सकती है ।  


फुटकर (पीस वर्क ) ठेका : इसके अंतर्गत प्रति यूनिट  दर निर्धारित की जाती है।  इसमें इस बात का निर्धारण नही किया जाता है कि कितना कार्य करना है या कितनी अवधि में कार्य करना है । रेलवे में इस प्रकार के ठेके प्रचलित है जब कार्य की प्रकृति छोटे - छोटे यूनिटों में विभाजित करने जैसी होती है, तब इस प्रकार के ठेके दिये जाते है इसमें ठेकेदार व्दारा जितने यूनिट का निर्माण किया जाता है उसी के अनुसार प्रति यूनिट की दर से भुगतान किया जाता है।  

 

भण्डार की आपूर्ति के लिए ठेके दो प्रकार के होते है – 

 

दर ठेका - इसमें भण्डार की सप्लाई के लिए दर का ठेका दिया जाता है। ठेकेदार व्दारा निर्धारित दर पर जब  भी मांग की जाए निर्धारित अवधि में निर्धारित मात्र में भण्डार की आपूर्ति की जाती है।  

 चालू (रनिंग) ठेका - इसमें भण्डार की आपूर्ति ठेकेदार व्दारा निर्धारित दर पर निर्धारित मात्रा में निर्धारित अवधि तक की जाती है ।  निर्धारित मात्र में 25 प्रतिशत का विचलन हो सकता है।  

 

आवश्यक प्रमाण - पत्र (अजेंसी सर्टिफिकेट)

·   सामान्यतः: कोई भी कार्य बिना विस्तृत अनुमान स्वीकृत हुए प्रारंभ नही किया जाता है  परंतु कुछ कार्यो पर व्यय बहुत ही शीघ्रता से करना होता है, क्योंकि ऐसा न करने से किसी जान या माल की हानि पहुँच सकती।  

·    सामान्यतः: बाढ़, दुर्घटना या अन्य कारणवश रेल की पटरी नष्ट हो जाने से रेल यातायात ठप हो जाता है और संचार व्यवस्था भंग हो जाती है। ऐसी परिस्थिति में यातायात को तुरंत बहाल करने के लिए व्यय बिना समर्थ अधिकारी की स्वीकृति के किया जा सकता है।

·      कार्यपालक इंजीनियर कार्य प्रारंभ करने के बाद एक रिपोर्ट बनाकर समर्थ अधिकारी के पास प्रशासनिक अनुमति एवं फंड की स्वीकृति के लिए भेजता है। यह रिपोर्ट आवश्यकता प्रमाण - पत्र कहलाती है इस रिपोर्ट में निम्न सूचनाएँ होती है – 

•      कार्य का विवरण 

•      कार्य प्रारंभ करने की तिथि

•      किस कारण से यह कार्य इस श्रेणी में लाया गया

•      कार्य पर अनुमानित खर्च व 

•      विस्तृत अनुमान प्रस्तुत करने की तिथि। 

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