सामान्य व्यय

सामान्य व्यय

व्यय मुख्यत: दो प्रकार का होता है -
  • पूंजीगत व्यय 
  • राजस्व व्यय 
पूंजीगत व्यय : किसी भी नई सम्पति की खरीद या निर्माण का खर्च पूंजीगत व्यय में आता है, इसमें उद्घाटन खर्च भी शामिल है  
राजस्व व्यय : पूंजीगत व्यय के तहत प्राप्त सम्पत्ति के रखरखाव और संचालन का खर्च राजस्व व्यय कहलाता है  

व्यय का वर्गीकरण

भारतीय रेलवे व्दारा किया जाने वाला व्यय पूँजी व राजस्व के निम्नलिखित मुख्य शीर्षों में विभाजित होता है -

  1. राजस्व (मांग संख्या 1 से 15 तक ) - सार ए ओ तक,
  2. पूँजी - पी
  3. मूल्य ह्रास आरक्षण निधि -  क्यू
  4. चालू लाइन निर्माण कार्य राजस्व - आर
  5. विकास निधि - एस
  6. पूँजी निधि
  7. विशेष रेल संरक्षा निधि
  8. रेल संरक्षा निधि
  1. राजस्व व्यय - रेलवे में राजस्व व्यय के अंतर्गत सामान्य संचालन संबंधी खर्च आता है, जैसे प्रशासनिक व्यय, सम्पतियो की मरम्मत एवं रखरखाव के व्यय कर्मचारियों का वेतन गाडियों के संचालन व विविध खर्च निधियो में बिनियोग एवं सामान्य राजस्व को लाभांश का भुगतान आते है  
  2. पूँजी व्यय - पूँजी व्यय के अंतर्गत चल और अचल सम्पत्ति जैसे - भूमि भवन मशीने चल स्टॉक और लाइनो के निर्माण बदलाव विकास एवं सुरक्षा संबंधी खर्च आते है यह खर्च अभी तक पूर्ण रूप से केंद्र सरकार की समेकित निधि व्दारा किया जाता है जिस पर प्रतिवर्ष रेलवे निश्चित डॉ से लाभांश का भुगतान भारत सरकार को करती है  
  3. पूँजी निधि - दिनांक 01.4.1993 से रेलवे ने अपने स्वयं की बचत से एक अलग निधि की स्थापना की जिसे पूँजी निधि नाम दिया गया इसमें उन्ही मदों पर खर्च किया जाता है जैसे की केंद्र सरकार व्दारा दी गई पूँजी व्दारा किया जाता है, लेकिन इस राशि पर हमें लाभांश का भुगतान नही करना होता है  
  4. मूल्यह्रास आरक्षित निधि - यह निधि को 1 अप्रैल 1924 शुरू की गई इसके अंतर्गत रेलवे परिसंपत्ति के बदलाव तथा नवीनीकरण करने की लागत के व्यय आते है जैसे पूरा रेलपथ बदलना, मशीने बदलना इत्यादि  
  5. चालू लाइन निर्माण कार्य राजस्व - इसके अंतर्गत नये लघु निर्माण कार्यो के लिए जिनकी निर्धारित सीमा एक लाख रूपये तक हो और अलाभकारी संचालनो में सुधार लाने के लिए किये गये ऐसे निर्माण कार्य जिनमे प्रत्येक  की लागत तीन लाख रूपये से अधिक न हो । इस निधि उद्देश्य सामान्य राजस्व पर अनावाश्यक भार न बढ़ने देना है  
  6. विकास निधि - मौजूदा ढांचे में विकास संबंधी कार्य के खर्च विकास निधि में आते है इस चार भागो में बाटा गया है -
  • DF - 1 : रेल परिवहन के सभी यात्री सुविधा उपयोगकर्ताओ के लिए सुविधाए जुटाना  
  • DF - 2 : श्रम हित संबंधी निर्माण कार्य जिनमे प्रत्येक पर नये छोटे निर्माण कार्यो की लागत सीमा एक रूपये से अधिक हो  
  • DF - 3 : तीन लाख रूपये से अधिक लागत के परिचालन सुधार संबंधी अलाभकारी निर्माण कार्य  
  • DF - 4: संरक्षा संबंधी कार्य  
7. विशेष संरक्षा निधि - इस निधि का गठन बकाया पड़े यात्री सुविधा एवं संरक्षा संबंधी बदलाव के कार्यो को नियत समय पर ख़त्म कर देने के लिये किया गया था। इस निधि को केंद्र सरकार व्दारा प्राप्त राशि तथा दिनांक 01.10.2001 से यात्री किराये के साथ वसूल किये गये अधिभार से प्रारंभ किया गया था इस निधि को वर्ष 2008 - 09 से बंद कर दिया गया है और इसकी शेष राशि को मूल्य ह्रास आरक्षित निधि (डीआरएफ) में स्थानांतरित क्र दिया गया है।

8. रेलवे सुरक्षा निधि - उपरोक्त सभी व्यय मांग के लिए अनुदान के रूप में निर्धारित 16 मांगो के तहत आते है इन्हें वर्तमान में संशोधित लेखा वर्गीकरण के तहत लिया जाता है

संशोधित लेखा वर्गीकरण


1 अप्रैल 1979 से भारतीय रेलों में लेखा वर्गीकरण की संशोधित पध्दति लागू की गई इसे संशोधित लेखा वर्गीकरण कहते है   

उद्देश्य 
  • व्यय के वर्गीकरण का सार संबंधित मांग अनुदान के अनुरूप हो और व्यय बजट वर्गीकरण से संरेखित हो,
  • वर्गीकरण ऐसा हो जिसमे कार्यकलापो के अनुसार उसका पूर्ण विवरण आय जाय, 
  • वर्गीकरण का कम्प्यूट्रीकरण हो सके, 
  • उसमे कार्यकलाप के निरूपण के साथ - साथ व्यय के उद्देश्य का भी पता चले 

इस वर्गीकरण से यह लाभ है कि इसके व्दारा किसी भी उद्देश्य के लिए किये गये व्यय को पहचाना जा सकता हैजिससे उस पर नियंत्रण में काफी सहायता मिलती है  

सिध्दांत
  • अनुदान की मांग में सरल ढंग से अर्थपूर्ण विवरण देने चाहिए  
  • प्रत्येक मांग में एक ही प्रकार का कार्य शामिल हो जो किसी ऐसे विभागीय प्राधिकारी के कार्यक्षेत्र में आता हो, जिससे उस मांग के सम्पूर्ण खर्च पर नियंत्रण किया जा सके सभी कार्यो में मांग में खर्च तथा परिणाम का आपसी संबंध स्पष्ट होना चाहिए   
  • मांग में खर्च की परिवर्तनशील गैर परिवर्तनशील और निश्चित मदों में अंतर किया जाना चाहिए   
  • मांग को वित्तीय लेखे से सीधे तैयार किया जाना चाहिए   
  • कुल खर्च के दृष्टिकोण से मांग का संतुलन होना चाहिए   

व्यय का वर्गीकरण 


इस वर्गीकरण की यह विशेषता है की खर्च को क्रिया कलापों के साथ जोड़ा गया है प्रत्येक सार में उपमुख्य शीर्ष का आगे वर्गीकरण लघु, उप और ब्यौरे वार शीर्ष (माइनर, सब और डिटेल हेड ) के अंतर्गत किया गया है प्रत्येक मांग के लघु शीर्ष को 100 से 900 तक अंक दिये गये जो उस मांग के अंतर्गत खर्च के उद्देश्य के लिए है  
 इन लघु शीर्षों को आगे उपशीर्षों और ब्योरेवार शीर्षों 10 से 90 तक तथा 1 से 9 तक क्रमश: पुन: बांटा गया है  
 जिससे छोटे - छोटे खर्चो को वर्गीकृत रूप से दर्ज किया जा सकता है  इसके पश्चात् प्रत्येक मांग को एक सार दिया गया है यह सार आय और व्यय को सम्मिलित करते हुए A से Z तक है अंत में खर्च के कारण को दर्शाने हेतु 2 अंक और दिये गये है जो 01 से 99 तक होते है इन्हें प्राथमिक इकाई कहते है इस प्रकार इस वर्गीकरण से व्यय का सम्पूर्ण विवरण आ जाता है यह वर्गीकरण कम्प्यूट्रीकरण के लिए स्वयं प्रेरित है  

उदाहरणायार्थ : बी 241 - 01 : इसमें बी अनुदान की मांग (रेल पथ और निर्माण की मरम्मत व अनुरक्षण का सार है, 241 लघु शीर्ष में 240 दस्ती अनुरक्षण के लिए और कूट 01 मजदूरी क्व लिए है 

योजना शीर्ष 

निर्माण कार्य में निम्नलिखित योजना शीर्ष उपयोग में लाये जाते है :


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