रेल लेखा की संकल्पना


रेल लेखा की संकल्पना

भारतीय रेले एक सरकारी एवं वाणिज्यिक प्रतिष्ठान दोनों है। यह सरकारी प्रतिष्ठान है, क्योकि इसमें लगे पूँजी, भारत सरकार  बहार से ऋण अथवा अपनी आय के विभिन्न स्त्रोतों से एकत्र करती है।

यह वाणिज्यिक संस्थान इसलिये है क्योकि ये परिवहन सेवाओ के निर्माण और बिक्री में लगी हुई और इसका उद्देश्य लाभ कमाना भी है । भारतीय रेल की अपनी निजी संपत्तिया है जिनका संचालन एवं अनुरक्षण भी वह करती है भारत सरकार से प्राप्त धन को रेलवे सरकार को एक निर्धारित दर पर लाभांश भी देती है। 

सरकारी लेखे हमेशा नगद आधार पर रखे जाते है, जबकि वाणिज्यिक लेखे उपार्जित एवं देयता आधार पर होते है। चुकि रेले दोनों तरह का प्रतिष्ठान है, अत: इसे दोनों आधार पर अपने लेखे रखने होते है सरकारी लेखो की आवश्यकताओ को ध्यान में रखते हुए रखे जाने वाले रेलवे लेखे वित्त लेखे कहलाते है और वाणिज्यिक आवश्यकताओ के अनुरूप रखे गये लेखे पूँजी एवं राजस्व ( कैपिटल  एवं लेखे कहलाते है। 

रेलवे में वित्त लेखे ठीक उसी प्रकार रखे जाते है जैसे भारत सरकार अपने लेन - देन का लेखा रखती है ऐसा इसलिये है ताकि रेलवे व सरकारी लेखो के बीच एकरूपता रहे। 

सरकारी लेखे 

भारत सरकार तीन भागो में अपने सरकारी लेखे प्रचालित करती है, इन तीन भागो को निधियो का नाम दिया गया है ये निम्न है - 
  1. सामेकित निधि  (Consolidated Fund)
  2. आकस्मिकता निधि (Contingency Fund)
  3. लोक लेखा निधि (Public Account Funds)

1. समेकित निधि (Consolidated Fund): भारतीय संविधान के अनुच्छेद 266 (1) के अधीन यह एक ऐसा कोष है, जिसमे भारत सरकार को प्राप्त होने वाली सभी रशिया आती है प्राप्त रशिया जैसे सभी राजस्व प्राप्तिया, बाहर से लिये गये ऋण दिये गये ऋणों की वसूलिया एवं वसूल किया गया ब्याज इत्यादि भारत सरकार की समस्त सरकारी खर्च भी इसी में से किये जाते है ।

 खर्च मुख्यत: तीन शीर्षों में किये जाते है - 
  1. राजस्व खर्च 
  2. पूँजी खर्च 
  3. कर्ज एवं ब्याज 
संविधान के अनुच्छेद 112(1) के अधीन प्रत्येक वित्तीय वर्ष के लिए राष्ट्रपति आय और व्यय का पूर्वानुमान बजट के रूप में संसद के दोनों सदनों (राज्य सभा एवं लोक सभा) में प्रस्तुत करते है और मंजूरी मिलने के बाद ही इस निधि में से खर्च किया जा सकता है ।

2. आकस्मिकता निधि (Contingency Fund) - समस्त पूर्व अनुमानित सरकारी खर्च बजट के व्दारा समेकित निधि में से किया जाता है, पर अचानक आया ऐसा आवश्यक खर्च जिसे पूर्व में बजट में शामिल नही किया गया और अगले बजट तक टालना संभव नही उसे अप्रत्याशित खर्च को आकस्मिकता निधि से निपटाया जाता है।  यह निधि राष्ट्रपति के पास रहती है। रेलवे के मामले में यह निधि वित्त आयुक्त के माध्यम से संचालित की जाती है आवश्यकता पड़ने पर निम्नलिखित विवरण के साथ वित्त आयुक्त को आवेदन किया जाता है - 
  • संबंधित कार्य पर होने वाले अनुमानित खर्च का संक्षिप्त विवरण 
  • परिस्थितिया जिनके कारण इस खर्च को पूर्व बजट में शामिल नही किया गया था 
  • खर्च को अगले बजट तक रोकना संभव नही है, का कारण 
  • कार्य की पूरी लागत एवं आकस्मिकता निधि में से अग्रिम की राशि 
  • अनुदान एवं विनियोग जिनके अधीन अंततः पूरक प्रावधान किया जायेगा 
इस प्रकार मंजूर अग्रिम की संसदीय अनुमति के लिए संसद को जो पहला सत्र बुलाया जायेगा, उसमे पूरक अनुदान के रूप में इस व्यय को रखा जायेगा । संसद की मंजूरी मिलते ही इस निधि में से दिये गये अग्रिम की राशि समेकित निधि मे से लेकर पुन: इस निधि में जमा कर दी जाएगी ।

3. लोक लेखा निधि (Public Account Funds) - समेकित निधि एवं आकस्मिकता निधि के अतिरिक्त शेष लेने  - देन को इसमें शामिल किया जाता है अर्थात सरकार व्दारा प्राप्त सभी अन्य सार्वजनिक रकमे एवं भुगतान इसके माध्यम से निपटाये जाते है इसके दो भाग है -

ऋण एवं जमा शीर्ष - सामेकित निधि में न आने वाले ऋण व जमाए जैसे भविष्य निधि खाते के लेनदेन जमा एवं भुगतान, ठेकेदारों से निवेश प्रतिभूतियो की जमा एवं भुगतान इत्यादि आते है।

प्रेषण शीर्ष - यह समायोजनो के लिए है जैसे एक खजाने से दूसरे खजाने में रोकड़ का प्रेषण तथा विभिन्न लेखा इकाइयों में आपसी समायोजन इत्यादि 

वाणिज्यिक लेखे 

वाणिज्यिक लेखो की आवश्यकता यह ज्ञात करना है की -
  1. व्यवसाय में पूँजी कितनी लगी और इसका उपयोग किस प्रकार किया जा रहा है। 
  2. व्यवसाय के देनदारो एवं लेनदारो तथा सम्पत्ति एवं दायित्व के बीच क्या संबंध है ।
  3. व्यवसाय को लाभ हो रहा है अथवा हानि ?
  4. लाभ अथवा हानि  क्या स्त्रोत है ?
  5. व्यवसाय सम्पन्न है अथवा ऋणी है ?
उक्त उद्देश्यों की पूर्ति के लिए रेलवे में विभिन्न वाणिज्यिक खाते रखे जातें है । वाणिज्यिक लेखे देयता क आधार पर अर्थात जो व्यवहार किसी अवधि विशेष में देय हो गया है, भले ही वास्तव में चुकाया अथवा प्राप्त नही किया गया है तो भी लेखे में बकाया या उपार्जित के नाम से लिख दिया जाता है तथा जो व्यवहार इस अवधि से संबंधित नही है किंतु अग्रिम में चुका अथवा प्राप्त कर लिये गये है , उन्हें उस अवधि से अग्रिम चुकाया या अग्रिम प्राप्त में डालकर उस अवधि विशेष के खाते में से उसका प्रभाव हटा दिया जाता है। जबकि सरकारी लेखो (वित्तीय लेखो) में भुगतान या प्राप्ति किसी भी संबंधित क्यों न हो, जिस अवधि में प्राप्त या चुकी जाती है, लेखो में ले ली जाती है। 
इस प्रकार इन दोनों लेखो में अंतर आ जाता है जिसे उचंत खाता खोलकर दूर किया जाता है। वास्तव में उच्नत खाते सरकारी और वाणिज्यिक लेखो को मिलाने के लिए पुल कार्य करते है ।


उचंत शीर्ष 

सरकारी लेखो के साथ संबंध स्थापित करने के लिए रेलों के लेखो में आमदनी और खर्च दोनो प्रकार के लेनदेनो के लिए निम्न उचंत शीर्ष रखे जाते है - 
  • यातायात लेखा ( Traffic Account) - यातायात आय के लिए 
  • वसूली योग्य मांगे (Demand / Bills Recoverable) - अन्य आय के लिए 
  • देय मांगे (Demand Payable) - व्ययों के लिए 
  • श्रम (Labour) - रेलवे कारखानों में श्रम भुगतान के लिए 
1. यातायात लेखा ( Traffic Account)  - यह उचंत खाता अवधि विशेष से संबंधित रेलवे के समस्त उपार्जित यातायात आय चाहे उसकी वसूली हुई हो या नही, को उसी लेखा अवधि में लेने के लिए प्रचलित किया जाता है । उपार्जित आय इस खाते में डेबिट क्र दी जाती है एवं वसूली हुई आय को क्रेडिट कर देते है। दोनों का अंतर उस अवधि में न वसूल हुई आय बताता है ।

2. वसूली योग्य मांगे (Demand / Bills Recoverable) - यातायात आय क अतिरिक्त शेष आय जैसे भूमि और इमारतो के किराये /पट्टे और साइडिंग से अनुरक्षण और ब्याज आदि की समस्त उपार्जित आय को संबंधित लेखा अवधि में लेने के लिए इस खाते को रखा जाता है। जैसे जी वसूली योग्य आय देय हो जाती है बिल बनाकर पार्टी को भेज दिया जाता है और उस राशि इस खाते में डेबिट कर दिया जाता है और वसूली हुई राशि को क्रेडिट कर दिया जाता है । खाते का शेष बकाया वसूली को बताता है, बाद में वसूली होने के साथ ही नगद को डेबिट और इस शीर्ष को क्रेडिट करने के साथ ही शेषो का सफाया हो जाता है ।

3. देय मांगे (Demand Payable)  - यह उचंत शीर्ष उन संचालन खर्चो को संबंधित अवधि के लेखो में लाने के लिए प्रचलित किया जाता है , जो खर्च देय हो जाता है बिल पास करके इस खाते के जमा में लिख दिया जाता है और खर्च के अंतिम शीर्ष को नामे कर दिया जाता है। उक्त लेखा अवधि के बाद जब भुगतान वास्तव में किया जाता है, तो इसे डेबिट कर नगद को डेबिटं और इस शीर्ष को क्रेडिट करने के साथ ही शीर्षों का सफाया हो जाता है ।

4. श्रम  (Labour) - यह शीर्ष कारखाना लेखा कार्यालय में प्रतिपादन किया जाता है। रेलवे कारखानों में श्रमिको को भुगतान कार्य के अगले महीने में किया जाता है। अत: उस माह जब वे श्रम करते है, कार्य पर श्रम का व्यय कारखाना विनिर्माण उचंत के माध्यम से बुक कर इस खाते के जमा में डाल देते है । जब भुगतान वास्तव में किया जाता है तो खाते के डेबिट व नगद को क्रेडिट कर सफाया कर दिया  जाता है।

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