अध्याय 23 - वित्तीय नियंत्रण एवं व्यय प्रबंधन (Financial Control & Expenditure Management)

 


भारतीय रेल न केवल देश का परिवहन तंत्र है, बल्कि यह राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की धड़कन भी है। विश्व का चौथा सबसे बड़ा रेलवे नेटवर्क होने के नाते इसके संचालन और रखरखाव के लिए अत्यधिक वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता होती है। वर्ष 2024-25 के केंद्रीय बजट दस्तावेज़ के अनुसार, भारतीय रेल का वार्षिक पूंजीगत व्यय  2.4 लाख करोड़ रुपये से अधिक निर्धारित किया गया है, जो इसकी विशालता और जटिलता का परिचायक है। इतने बड़े वित्तीय ढाँचे का संचालन केवल तभी संभव है जब एक सुदृढ़ और व्यवस्थित वित्तीय नियंत्रण तथा व्यय प्रबंधन प्रणाली लागू हो। ये व्यवस्थाएँ न केवल अनुशासन और पारदर्शिता सुनिश्चित करती हैं, बल्कि संसाधनों के कुशलतम उपयोग, दीर्घकालिक वित्तीय स्थिरता, और संगठन की उत्तरदायित्व प्रणाली को भी सशक्त करती हैं।

नीचे प्रस्तुत विषयवस्तु में हम रेलवे के वित्तीय नियंत्रण एवं व्यय प्रबंधन की संरचना, साधन, प्रक्रियाएँ, आधुनिक सुधार, चुनौतियाँ और भविष्य की दिशा का विस्तृत अध्ययन करेंगे।


1. वित्तीय नियंत्रण का महत्व (Importance of Financial Control)

रेलवे जैसे विशाल संगठन में वित्तीय नियंत्रण केवल खर्चों की जाँच का कार्य नहीं है, बल्कि यह एक व्यापक प्रणाली है जो योजनाओं, कार्यक्रमों और संसाधनों को सुव्यवस्थित करती है। इसके मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं—

नियमबद्धता (Regulation): रेलवे में प्रत्येक व्यय Indian Railway Financial Code (IRFC), Delegation of Financial Powers Rules (DFPR) तथा मंत्रालय द्वारा जारी परिपत्रों के अनुरूप होना आवश्यक है। यह नियमबद्धता सुनिश्चित करती है कि कोई भी व्यय मनमाने ढंग से न हो।

अनुशासन (Discipline): वित्तीय अनुशासन का अर्थ है—अनधिकृत, फिजूल या अपव्ययकारी व्ययों की रोकथाम। उदाहरणार्थ, किसी नई परियोजना के लिए बिना स्वीकृत अनुमान (Sanctioned Estimate) के व्यय नहीं किया जा सकता।

जवाबदेही (Accountability): प्रत्येक अधिकारी अपनी वित्तीय कार्रवाई के लिए उत्तरदायी होता है। रेलवे बोर्ड (Railway Board) तथा जोनल रेलवे मुख्यालय, दोनों स्तरों पर यह सुनिश्चित किया जाता है कि निर्णय और व्यय पारदर्शी हों।

संसाधनों का कुशल उपयोग (Efficient Resource Utilization): वित्तीय नियंत्रण यह सुनिश्चित करता है कि सीमित संसाधनों का उपयोग अधिकतम लाभ हेतु हो। जैसे—पटरियों के विद्युतीकरण से ईंधन लागत में बचत हुई और संचालन दक्षता बढ़ी।

संसदीय उत्तरदायित्व (Parliamentary Accountability): संसद के समक्ष "डिमांड्स फॉर ग्रांट्स " और "अप्रोप्रियेशन अकाउंट्स प्रस्तुत किए जाते हैं। इससे जनता और संसद के प्रति रेलवे की वित्तीय पारदर्शिता और जवाबदेही स्थापित होती है।

2. व्यय प्रबंधन का महत्व (Importance of Expenditure Management)

व्यय प्रबंधन का तात्पर्य केवल खर्चों की सीमा तय करने से नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी प्रणाली है जो प्राथमिकताओं का निर्धारण करती है, संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग करती है और दीर्घकालिक वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करती है।

आवश्यक और प्राथमिक व्यय पर जोर: रेलवे में सुरक्षा (Safety), रखरखाव (Maintenance) और कर्मचारी कल्याण (Staff Welfare) जैसे क्षेत्रों पर व्यय प्राथमिकता के आधार पर किया जाता है।

फिजूलखर्ची की रोकथाम: पुराने अनुबंधों की समीक्षा, ई-प्रोक्योरमेंट (E-Procurement) और डिजिटल पेमेंट्स के माध्यम से व्यय में पारदर्शिता लाई गई है।

योजनाओं का समयबद्ध कार्यान्वयन: नई लाइनें, डबलिंग (Doubling), विद्युतीकरण और स्टेशन पुनर्विकास जैसी परियोजनाएँ समयबद्ध ढंग से पूरी हों, इसके लिए व्यय प्रबंधन आवश्यक है।

दीर्घकालिक वित्तीय स्थिरता: सतत राजस्व स्रोत और नियंत्रित व्यय के माध्यम से संगठन की वित्तीय स्थिरता बनाए रखी जाती है।

3. रेलवे में वित्तीय नियंत्रण की संरचना (Structure of Financial Control in Railways)

रेलवे में वित्तीय नियंत्रण बहु-स्तरीय है, जिसमें आंतरिक, बाहरी और बजट संबंधी नियंत्रण शामिल हैं।

(क) आंतरिक नियंत्रण (Internal Control):

लेखा विभाग (Accounts Department) द्वारा प्री-ऑडिट और पोस्ट-ऑडिट की व्यवस्था है। अनुबंधों और बिलों की जाँच कर यह सुनिश्चित किया जाता है कि व्यय स्वीकृत प्रावधानों के भीतर हो।

(ख) बाहरी नियंत्रण (External Control):

भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (Comptroller & Auditor General) रेलवे के खातों की ऑडिट करता है। साथ ही, संसद की लोक लेखा समिति इन ऑडिट रिपोर्टों की समीक्षा करती है।

(ग) बजट नियंत्रण (Budgetary Control):

प्रत्येक व्यय को बजट सीमा के भीतर रखा जाता है। अप्रोप्रियेशन अकाउंट्स (Appropriation Accounts) द्वारा वास्तविक व्यय और अनुमोदित व्यय की तुलना की जाती है।

4. व्यय प्रबंधन के प्रमुख घटक (Key Components of Expenditure Management)

  1. योजना व्यय (Plan Expenditure): नई लाइनों, विद्युतीकरण, स्टेशन पुनर्विकास और आधुनिक तकनीकों में निवेश।
  2. गैर-योजना व्यय (Non-Plan Expenditure): कर्मचारियों का वेतन, पेंशन, चिकित्सा और रखरखाव।
  3. पूंजीगत व्यय (Capital Expenditure): दीर्घकालिक संपत्ति निर्माण, जैसे नई बोगियाँ और इंजन।
  4. संचालन व्यय (Operating Expenditure): ऊर्जा, मरम्मत, ईंधन और दिन-प्रतिदिन का संचालन।
  5. अनुदान आधारित व्यय (Grant-based Expenditure): संसद से स्वीकृत अनुदानों के अनुरूप किया जाने वाला खर्च।

5. वित्तीय नियंत्रण के प्रमुख साधन (Instruments of Financial Control)

रेलवे में वित्तीय नियंत्रण के लिए कई महत्वपूर्ण साधन उपयोग किए जाते हैं। बजट वार्षिक वित्तीय योजना के रूप में तैयार किया जाता है, जो विभिन्न व्ययों और निवेशों का अनुमान प्रस्तुत करता है। अप्रोप्रियेशन अकाउंट्स (Appropriation Accounts) का उद्देश्य वास्तविक व्यय और अनुमोदित व्यय की तुलना करना है, ताकि वित्तीय अनुशासन सुनिश्चित किया जा सके। डिमांड्स फॉर ग्रांट्स (Demands for Grants) के माध्यम से संसद से आवश्यक वित्तीय स्वीकृति प्राप्त की जाती है, जो व्यय की वैधता और पारदर्शिता सुनिश्चित करती है। फाइनेंशियल रूल्स और कोड्स (Financial Rules & Codes), जैसे Railway Financial Code और DFPR, व्यय प्रबंधन के लिए कानूनी और नियामक ढांचा प्रदान करते हैं। ऑडिट (Audit) प्रणाली के अंतर्गत आंतरिक और बाहरी दोनों प्रकार के ऑडिट आयोजित किए जाते हैं, जिससे वित्तीय गतिविधियों की सही रिपोर्टिंग और नियंत्रण सुनिश्चित होता है। इसके अतिरिक्त, MIS (Management Information System) का उपयोग वास्तविक समय (Real-time) पर निगरानी और रिपोर्टिंग के लिए किया जाता है, जिससे प्रबंधन को त्वरित और सटीक वित्तीय जानकारी उपलब्ध होती है।

6. रेलवे में व्यय नियंत्रण की प्रक्रिया (Process of Expenditure Control)

  1. अनुमोदन (Sanction): व्यय से पूर्व सक्षम प्राधिकारी की स्वीकृति।
  2. अधिनियोजन (Appropriation): बजट सीमा का आवंटन।
  3. पुनर्विनियोजन (Re-appropriation): राशि का एक मद से दूसरे मद में स्थानांतरण।
  4. भुगतान (Disbursement): बिल और वाउचर के माध्यम से।
  5. लेखांकन (Accounting): सभी व्ययों का अभिलेखन।
  6. निगरानी (Monitoring): सतत समीक्षा और रिपोर्टिंग।

7. व्यय प्रबंधन में आधुनिक सुधार, चुनौतियाँ, भविष्य की दिशा और केस स्टडी

भारतीय रेल ने हाल के वर्षों में व्यय प्रबंधन (को अधिक पारदर्शी, परिणामोन्मुख और तकनीकी रूप से सक्षम बनाने के लिए कई आधुनिक सुधार लागू किए हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण है IPAS (Integrated Payroll & Accounting System), जिसके माध्यम से भुगतान और लेखांकन प्रक्रियाएँ पूर्णतः डिजिटल हो चुकी हैं। इसी तरह IFMS (Integrated Financial Management System) ने राजस्व और व्यय का बेहतर समन्वय स्थापित किया है। अनुबंध प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने हेतु ई-प्रोक्योरमेंट सिस्टम (E-Procurement System) को अपनाया गया है। इसके अलावा, रेलवे ने Outcome Budgeting को लागू किया है, जहाँ खर्च का मूल्यांकन केवल राशि पर नहीं बल्कि उसके ठोस परिणामों पर आधारित होता है। साथ ही, Zero Based Budgeting (ZBB) की अवधारणा के अनुसार हर व्यय मद की शून्य से समीक्षा की जाती है। आधुनिक तकनीक की ओर कदम बढ़ाते हुए रेलवे Artificial Intelligence (AI) और Data Analytics का उपयोग कर रहा है, जिससे असामान्य व्ययों की पहचान और समय रहते उनकी रोकथाम संभव हो रही है।

इन सुधारों के बावजूद, रेलवे का व्यय प्रबंधन अनेक चुनौतियों का सामना कर रहा है। सबसे बड़ी चुनौती है वेतन और पेंशन का बढ़ता बोझ, जो राजस्व व्यय पर भारी दबाव डालता है। साथ ही, ऊर्जा लागत में लगातार वृद्धि से वित्तीय स्थिति प्रभावित होती है। परियोजनाओं की लागत वृद्धि और कार्यान्वयन में देरी भी गंभीर समस्या है। कई बार अनुबंध प्रणाली में पारदर्शिता की कमी देखने को मिलती है। इसके अतिरिक्त, बड़े पैमाने पर निवेश की आवश्यकता के बावजूद रेलवे के लिए निजी निवेश आकर्षित करना कठिन बना हुआ है।

भविष्य की दिशा में रेलवे ने व्यय प्रबंधन को और अधिक प्रभावी बनाने हेतु कई योजनाएँ तैयार की हैं। इसमें प्रमुख है Outcome-linked Expenditure, जिसमें खर्च का मूल्यांकन केवल राशि से नहीं बल्कि वास्तविक परिणामों और उपलब्धियों से किया जाएगा। पर्यावरणीय दृष्टिकोण से Green Financing को बढ़ावा दिया जा रहा है, ताकि नवीकरणीय ऊर्जा और पर्यावरण-संबंधी परियोजनाओं में निवेश हो सके। निजी क्षेत्र की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए PPP (Public Private Partnership) को सशक्त बनाया जा रहा है। तकनीकी स्तर पर, रेलवे Digital Monitoring Tools जैसे AI और Blockchain आधारित नियंत्रण प्रणाली लागू करने की दिशा में अग्रसर है। अंततः, संसाधनों का अधिकतम उपयोग और लागत का न्यूनतमकरण (Resource Optimization) रेलवे की व्यय प्रबंधन नीति का मूल लक्ष्य है।

एक विशेष केस स्टडी इस संदर्भ में उल्लेखनीय है। वर्ष 2018 में रेलवे ने डीज़ल इंजनों की तुलना में बिजली आधारित ट्रैक्शन को प्राथमिकता देने का निर्णय लिया। इस रणनीति के परिणामस्वरूप ऊर्जा लागत में उल्लेखनीय कमी आई। रेलवे बोर्ड की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार विद्युत ट्रैक्शन से लगभग 30% लागत बचत संभव हुई। यह उदाहरण इस तथ्य को पुष्ट करता है कि सुविचारित रणनीतियों और तकनीकी बदलावों से व्यय प्रबंधन अधिक प्रभावी एवं परिणामोन्मुख बनाया जा सकता है।

8. निष्कर्ष (Conclusion)

रेलवे में वित्तीय नियंत्रण और व्यय प्रबंधन एक ऐसी प्रणाली है जो संगठन की दक्षता, पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करती है। बजट नियंत्रण, आंतरिक और बाहरी ऑडिट, और आधुनिक तकनीकों जैसे IPAS तथा IFMS ने इस प्रक्रिया को सुदृढ़ बनाया है। भविष्य में Outcome-based Approaches, Digital Monitoring Tools और Green Financing जैसी पहलें रेलवे के वित्तीय ढाँचे को और मजबूत बनाएंगी। यह कहना उचित होगा कि वित्तीय अनुशासन और व्यय प्रबंधन ही भारतीय रेल को आत्मनिर्भर, आधुनिक और जनता के प्रति उत्तरदायी बनाए रखने का आधार स्तंभ हैं।


 

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