Annexure – XII
भारतीय रेल में अनुबंध प्रबंधन (Contract
Management in Indian Railways)
भारतीय रेल का वार्षिक पूंजीगत व्यय (Capital Expenditure) और राजस्व व्यय (Revenue Expenditure) दोनों ही हज़ारों करोड़ रुपये में होता है। इन व्ययों का एक बड़ा हिस्सा अनुबंधों (Contracts) के माध्यम से किया जाता है। रेलवे में अनुबंधों की प्रकृति विविध होती है—नई लाइनों का निर्माण (New Line Construction), दोहरीकरण (Doubling), विद्युतीकरण (Electrification), स्टेशन पुनर्विकास (Station Redevelopment), रोलिंग स्टॉक की आपूर्ति (Rolling Stock Supply), केटरिंग सेवाएँ (Catering Services), सुरक्षा (Security), और सूचना प्रौद्योगिकी सेवाएँ (IT Services)। इस कारण अनुबंध प्रबंधन (Contract Management) रेलवे प्रशासन का एक अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य है, जो यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक अनुबंध समय पर, उचित लागत पर और अपेक्षित गुणवत्ता (Desired Quality) के साथ पूर्ण हो।
परिभाषा (Definition)
अनुबंध प्रबंधन (Contract Management) वह संपूर्ण प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत रेलवे और विक्रेता/ठेकेदार (Vendor/Contractor) के बीच हुए अनुबंध (Agreement) की निगरानी (Monitoring), निष्पादन (Execution), भुगतान (Payment) और विवाद समाधान (Dispute Resolution) किया जाता है।
अनुबंध जीवन चक्र (Contract Life Cycle in Railways)
अनुबंध प्रबंधन का जीवन चक्र कई चरणों में विभाजित होता है।
(i) पूर्व-अनुबंध चरण (Pre-Contract Stage): इस चरण में निविदा आमंत्रण (Tendering), बोली मूल्यांकन (Bid Evaluation), अनुबंध पर हस्ताक्षर (Contract Agreement Signing) और प्रदर्शन गारंटी जमा (Performance Guarantee Deposit) शामिल होते हैं।
(ii) निष्पादन चरण (Execution Stage): इस चरण में ठेकेदार कार्य प्रारंभ करता है और रेलवे अभियंता या निरीक्षक (Engineers/Supervisors) उसकी निगरानी करते हैं। कार्य की प्रगति रिपोर्ट (Work Progress Report) इस दौरान तैयार होती है।
(iii) मापन एवं बिलिंग (Measurement & Billing): कार्य की पूर्णता पर मापन पुस्तिका (Measurement Book – MB) तैयार की जाती है। इसके आधार पर आंतरिम बिल (Interim Bills / Running Account Bills) और अंतिम बिल (Final Bill) बनाया जाता है। लेखा विभाग (Accounts Department) इनका सत्यापन कर भुगतान करता है।
(iv) परिवर्तन एवं संशोधन (Variation & Modification): यदि कार्यदायरे (Scope) में परिवर्तन आवश्यक हो तो परिवर्तन आदेश (Variation Order) जारी किया जाता है और संशोधित अनुमान (Modified Estimate) की स्वीकृति प्राप्त की जाती है।
(v) पूर्णता एवं समापन (Completion & Closure): कार्य पूर्ण होने पर कार्य पूर्णता प्रमाणपत्र (Completion Certificate) जारी किया जाता है, सुरक्षा जमा (Security Deposit) लौटाई जाती है और अंतिम बिल का निपटान कर अनुबंध समाप्त हो जाता है।
4. अनुबंधों के प्रकार (Types of Contracts in Indian Railways)
भारतीय रेल में अनुबंधों को पाँच मुख्य श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है—कार्य अनुबंध (Works Contracts), सेवा अनुबंध (Service Contracts), आपूर्ति अनुबंध (Supply Contracts), टर्नकी अनुबंध (Turnkey Contracts – EPC: Engineering, Procurement, Construction) और सार्वजनिक-निजी भागीदारी अनुबंध (PPP Contracts), जैसे BOT, Annuity और Concession Agreements।
सुरक्षा प्रावधान (Safeguards in Railway Contracts)
प्रत्येक अनुबंध में विभिन्न प्रकार की सुरक्षा व्यवस्थाएँ की जाती हैं। प्रदर्शन गारंटी (Performance Guarantee – PG) सामान्यतः अनुबंध मूल्य का पाँच प्रतिशत होती है, जिसे ठेकेदार से लिया जाता है और गैर-प्रदर्शन की स्थिति में जब्त (Forfeit) किया जा सकता है। सुरक्षा जमा (Security Deposit) अनुबंध अवधि में बिलों से काटी जाती है और अनुबंध समापन पर वापस की जाती है। तरलित हर्जाना (Liquidated Damages – LD) अनुबंध में देरी की स्थिति में लगाया जाता है। इसके अतिरिक्त, दंड प्रावधान (Penalty Clauses) भी होते हैं, जिनके अंतर्गत सुरक्षा उल्लंघन या गुणवत्ता की कमी पर दंड लगाया जा सकता है।
विवाद समाधान (Dispute Resolution)
रेलवे अनुबंधों में विवाद उत्पन्न होना सामान्य बात है। भुगतान में विलंब, कार्यदायरे में परिवर्तन, लागत वृद्धि और गुणवत्ता संबंधी मुद्दे इसके प्रमुख उदाहरण हैं। इन विवादों के समाधान हेतु कई तंत्र उपलब्ध हैं। अनुबंधों में पंचाट (Arbitration) की धारा अंतर्निहित होती है। बड़े प्रोजेक्ट्स के लिए विवाद समाधान बोर्ड (Dispute Resolution Board – DRB) गठित किए जाते हैं, जिनमें स्वतंत्र विशेषज्ञ शामिल होते हैं। रेलवे बोर्ड स्तर पर सुलह (Conciliation) की व्यवस्था है। हाल के वर्षों में वाणिज्यिक न्यायालयों (Commercial Courts) में अनुबंध विवादों का त्वरित निपटान भी किया जाने लगा है।
लेखा एवं लेखा-परीक्षा की भूमिका (Role of Accounts & Audit)
लेखा विभाग (Accounts Department) अनुबंध समझौतों की जाँच (Vetting), वित्तीय स्वीकृति (Financial Sanction) की पुष्टि और बिल भुगतान का सत्यापन करता है। वहीं, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (C&AG) अनुबंध की अनियमितताओं की जाँच करते हैं, परिवर्तन आदेशों (Variation Orders) की समीक्षा करते हैं और तरलित हर्जाना वसूली (LD Recovery) की निगरानी करते हैं।
डिजिटल साधन (Digital Tools in Contract Management)
अनुबंध प्रबंधन में डिजिटल तकनीक का प्रयोग व्यापक रूप से हो रहा है। इंडियन रेलवे ई-प्रोक्योरमेंट सिस्टम (Indian Railways e-Procurement System – IREPS) अनुबंधों के आवंटन और निगरानी के लिए उपयोग किया जाता है। ई-दृष्टि डैशबोर्ड (e-Drishti Dashboard) रेलवे बोर्ड को वास्तविक समय (Real-time) पर अनुबंधों की जानकारी प्रदान करता है। आईपीएएस (IPAS – Integrated Payroll and Accounting System) के साथ एकीकरण से अनुबंध भुगतान ऑनलाइन हो गए हैं। कुछ ज़ोनल रेलों में ईआरपी (ERP Systems) का भी प्रयोग हो रहा है।
व्यावहारिक उदाहरण (Practical Illustration)
मान लीजिए, रेलवे ने ₹500 करोड़ का विद्युतीकरण अनुबंध दिया। ठेकेदार ने कार्य प्रारंभ किया, लेकिन कार्य में विलंब हुआ। रेलवे ने अनुबंध की तरलित हर्जाना धारा (Liquidated Damages Clause) लागू की। ठेकेदार ने पंचाट (Arbitration) की मांग की। विवाद समाधान बोर्ड (DRB) ने आंशिक राहत प्रदान की और समयावधि बढ़ा दी। अंततः, कार्य पूर्ण होने के बाद अंतिम बिल का निपटान हुआ और सुरक्षा जमा (Security Deposit) लौटा दी गई। यह उदाहरण दर्शाता है कि अनुबंध प्रबंधन में निष्पक्षता (Fairness) और अनुशासन (Discipline) का संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। चुनौतियाँ (Challenges in Contract Management)
अनुबंध प्रबंधन में कई व्यावहारिक चुनौतियाँ सामने आती हैं। परियोजना में विलंब से लागत में वृद्धि (Cost Overrun) होती है। ठेकेदार के प्रदर्शन की निगरानी कठिन होती है। बार-बार होने वाली मुकदमेबाज़ी (Frequent Litigation) और पंचाट (Arbitration) के लंबित मामले रेलवे की दक्षता को प्रभावित करते हैं। कई बार कार्यदायरे का अनियोजित विस्तार (Scope Creep) और भुगतान में विलंब भी ठेकेदारों के असंतोष का कारण बनते हैं।
हाल के सुधार (Recent Reforms)
अनुबंध प्रबंधन में सुधार हेतु हाल के वर्षों में कई कदम उठाए गए हैं। इंजीनियरिंग, प्रोक्योरमेंट और कंस्ट्रक्शन (EPC) अनुबंधों में समयबद्ध निष्पादन की जिम्मेदारी ठेकेदार पर डाली गई है। परियोजना में विलंब कम करने के लिए सिंगल विंडो क्लीयरेंस (Single Window Clearances) प्रणाली लागू की गई है। अनिवार्य पंचाट पैनल (Mandatory Arbitration Panel) और डिजिटल बिल प्रसंस्करण (Digital Bill Processing) से विवाद निपटान और भुगतान में तेजी आई है। सार्वजनिक-निजी भागीदारी अनुबंधों में स्वतंत्र अभियंता (Independent Engineers – IEs) की नियुक्ति भी की गई है।
पर्यवेक्षण तंत्र (Oversight Mechanism)
अनुबंध प्रबंधन की निगरानी व्यवस्था कई स्तरों पर की जाती है। रेलवे बोर्ड (Railway Board) उच्च मूल्य के अनुबंधों की स्वीकृति देता है। ज़ोनल महाप्रबंधक (General Managers) मध्यम मूल्य अनुबंधों की निगरानी करते हैं। संसदीय समितियाँ (Parliamentary Committees) बड़े प्रोजेक्ट्स की समीक्षा करती हैं। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (C&AG) और सतर्कता संगठन (Vigilance) अनुबंध संबंधी अनियमितताओं पर कार्रवाई करते हैं।
निष्कर्ष (Conclusion)
अनुबंध प्रबंधन भारतीय रेल के पूंजीगत और राजस्व व्यय को नियंत्रित करने का सबसे महत्वपूर्ण साधन है। इसमें केवल समझौता (Agreement) ही नहीं, बल्कि निष्पादन (Execution), बिलिंग (Billing) और समापन (Closure) की पूरी प्रक्रिया सम्मिलित होती है। अनुबंधों के विभिन्न प्रकार, सुरक्षा प्रावधान, विवाद समाधान तंत्र और डिजिटल साधनों की उपलब्धता इसे और प्रभावी बनाते हैं। एक सुदृढ़ अनुबंध प्रबंधन प्रणाली भारतीय रेल को समयबद्ध (Time-bound), लागत-प्रभावी (Cost-effective) और पारदर्शी (Transparent) बनाती है, तथा इसे भविष्य में अधिक सक्षम और विश्वसनीय बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान देती है।
