Paperback Book - भारतीय रेल : वित्तीय नियम एवं प्रबंधन
eBook - भारतीय रेल : वित्तीय नियम एवं प्रबंधन
रेलवे में आय के स्रोत (Sources of Railway Revenue)
भारतीय रेलवे केवल एक परिवहन व्यवस्था ही नहीं, बल्कि यह देश की आर्थिक प्रगति, सामाजिक समरसता और राष्ट्रीय एकीकरण की धुरी (Pivot) है। यह न केवल प्रतिदिन करोड़ों यात्रियों और लाखों टन माल को गंतव्य तक पहुँचाती है, बल्कि भारत सरकार के लिए एक महत्वपूर्ण राजस्व उत्पन्न करने वाला उपक्रम (Undertaking) भी है। वित्तीय वर्ष 2023–24 के रेलवे बजट दस्तावेज़ के अनुसार, भारतीय रेलवे का कुल व्यय और आय लाखों करोड़ रुपये के पैमाने पर है। ऐसे में इसकी वित्तीय स्थिरता (Financial Stability) सीधे-सीधे इस बात पर निर्भर करती है कि इसके आय के स्रोत कितने सशक्त, विविध और टिकाऊ (Sustainable) हैं। इस अध्याय में रेलवे आय की पृष्ठभूमि, इसके प्रमुख और गौण स्रोतों, आधुनिक सुधारों और भविष्य की चुनौतियों का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत किया जा रहा है।
1. रेलवे आय
का महत्व (Importance of Railway Revenue)
रेलवे की
वित्तीय संरचना बहुआयामी है और इसका राजस्व केवल लाभ कमाने तक सीमित नहीं है।
रेलवे राजस्व का महत्व निम्नलिखित कारणों से अत्यधिक है—
पहला, रेलवे का
दैनिक संचालन (Operations)
और रखरखाव (Maintenance)
राजस्व पर ही आधारित है। देश के 67,000 किलोमीटर से अधिक लंबे नेटवर्क का सुचारू संचालन, ट्रैक और
पुलों की मरम्मत, लोकोमोटिव
और कोचों का रखरखाव, तथा विद्युत
एवं सिग्नलिंग व्यवस्थाओं का आधुनिकीकरण तभी संभव है जब नियमित राजस्व उपलब्ध हो।
दूसरा, कर्मचारियों
के वेतन और पेंशन का भुगतान रेलवे के राजस्व व्यय (Revenue Expenditure) का एक बड़ा हिस्सा है। रेलवे बोर्ड के आंकड़ों के
अनुसार, कुल राजस्व
व्यय का लगभग 50% से अधिक
हिस्सा वेतन, भत्तों और
पेंशन भुगतान में ही खर्च हो जाता है। अतः स्थिर राजस्व धारा के बिना इस दायित्व
का निर्वहन असंभव है।
तीसरा, रेलवे की
विकासात्मक योजनाएँ और पूँजीगत निवेश (Capital Investment) भी राजस्व पर आधारित हैं। नई परियोजनाएँ, जैसे
समर्पित माल गलियारे (Dedicated
Freight Corridors), उच्च गति रेल (High Speed
Rail), और स्टेशन पुनर्विकास (Station
Redevelopment), केवल तभी आगे बढ़ सकते हैं जब पर्याप्त आंतरिक संसाधन (Internal Resources) उपलब्ध हों।
चौथा, रेलवे
राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के लिए अप्रत्यक्ष राजस्व का भी स्रोत है। यातायात लागत
में कमी लाकर यह उद्योगों की प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाता है और केंद्र सरकार को
प्रत्यक्ष कर (Direct Tax)
तथा अप्रत्यक्ष कर (Indirect
Tax) के रूप में अतिरिक्त आय उपलब्ध कराता है।
2. रेलवे आय
के प्रमुख स्रोत (Major Sources of Railway Revenue)
रेलवे की आय को मुख्यतः
पाँच भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है—माल भाड़ा आय, यात्री
आय, कोचिंग आय, गैर-भाड़ा आय, और अनुदान/सहायता। प्रत्येक स्रोत का विश्लेषण इस प्रकार है।
(क) माल भाड़ा आय (Freight
Revenue)
भारतीय रेलवे के लिए माल
ढुलाई आय सबसे बड़ा और प्रमुख स्रोत है। कुल राजस्व का लगभग 65–70% हिस्सा
माल भाड़ा से आता है। माल ढुलाई से प्राप्त आय रेलवे के वित्तीय स्वास्थ्य की रीढ़
मानी जाती है। माल ढुलाई के अंतर्गत प्रमुख वस्तुएँ कोयला, लौह
अयस्क, सीमेंट, पेट्रोलियम उत्पाद,
तथा खाद्यान्न और कृषि उत्पाद हैं। कोयला थर्मल पावर प्लांट्स की
निर्भरता के कारण रेलवे का सबसे बड़ा माल है। लौह अयस्क इस्पात उद्योग हेतु आवश्यक
है, जबकि सीमेंट निर्माण और अवसंरचना क्षेत्र के लिए
महत्वपूर्ण है। पेट्रोलियम उत्पाद तेल रिफाइनरी से वितरण केंद्रों तक पहुँचाए जाते
हैं और खाद्यान्न तथा कृषि उत्पाद विशेषकर खाद्य सुरक्षा योजनाओं के तहत परिवहन
किए जाते हैं। रेलवे बोर्ड के अनुसार, माल ढुलाई का दायरा
निरंतर बढ़ रहा है। विशेष रूप से कंटेनर यातायात और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के
संदर्भ में, रेलवे ने पिछले वर्षों में आधुनिक कंटेनर
टर्मिनल और लॉजिस्टिक हब विकसित किए हैं।
(ख) यात्री आय (Passenger
Revenue)
यात्री आय रेलवे की
दूसरी सबसे बड़ी आय का स्रोत है। इसमें लंबी दूरी की मेल/एक्सप्रेस गाड़ियाँ, उपनगरीय
सेवाएँ विशेषकर मुंबई, चेन्नई और कोलकाता जैसे महानगरों में,
तथा प्रीमियम ट्रेनें जैसे राजधनी, शताब्दी,
दूरंतो और वंदे भारत शामिल हैं। यद्यपि यात्री आय का योगदान लगभग 25–30%
है, यह माल भाड़ा की तुलना में अपेक्षाकृत कम
है। इसका मुख्य कारण यह है कि यात्री किराए को सामाजिक दायित्व के अंतर्गत कम रखा
जाता है। रेलवे के Social Service Obligation Committee Report (2017) के अनुसार, रेलवे प्रतिवर्ष हजारों करोड़ रुपये यात्री
किराए में सब्सिडी प्रदान करता है।
(ग) कोचिंग आय (Coaching
Revenue)
कोचिंग आय का आशय यात्री
सेवाओं से इतर उन गतिविधियों से है जो कोचिंग परिसंपत्तियों के उपयोग से उत्पन्न
होती हैं। इसमें प्रमुख रूप से पार्सल सेवाएँ, लगेज शुल्क, तथा
डाक और पोस्टल वैन से प्राप्त आय शामिल हैं। यह आय अपेक्षाकृत कम होती है, किन्तु हाल के वर्षों में ई-कॉमर्स के बढ़ते प्रसार के कारण पार्सल
यातायात में वृद्धि हुई है।
(घ) गैर-भाड़ा आय (Non-Fare
Revenue – NFR)
रेल मंत्रालय ने हाल के
वर्षों में गैर-भाड़ा आय को प्राथमिकता दी है। इसमें विज्ञापन, भूमि और
भवनों का वाणिज्यिक उपयोग, स्टेशन पुनर्विकास से आय, तथा रिटेल आउटलेट्स और फूड प्लाज़ा से आय शामिल हैं। रेलवे ने Non-Fare
Revenue Policy के अंतर्गत लक्ष्य रखा है कि कुल राजस्व का 10–15%
हिस्सा इस स्रोत से आए।
(ङ) अनुदान और सहायता (Grants
& Subsidies)
केंद्र सरकार रेलवे को
विशेष परियोजनाओं और सामाजिक दायित्वों के निर्वहन हेतु वित्तीय सहायता प्रदान
करती है। इसमें सुरक्षा कोष, नई लाइन परियोजनाओं के लिए पूँजीगत अनुदान,
तथा रेलवे पेंशन फंड में योगदान शामिल हैं।
3. विशेष आय
स्रोत (Special Sources of Revenue)
रेलवे की आय केवल
पारंपरिक मदों तक सीमित नहीं है; इसके अतिरिक्त कुछ विशेष आय स्रोत भी
महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन स्रोतों में सबसे प्रमुख हैं रेलवे उपक्रमों से
प्राप्त लाभांश, ब्याज आय और अन्य विविध आय।
रेलवे उपक्रमों से
लाभांश (Dividends
from Railway PSUs) एक महत्वपूर्ण आय स्रोत है। IRCTC,
CONCOR, IRFC जैसे उपक्रम अपने लाभांश का एक बड़ा हिस्सा रेलवे को
प्रदान करते हैं, जिससे रेलवे की वित्तीय स्थिति मजबूत होती
है।
ब्याज आय (Interest Income) का स्रोत बैंक जमा और विभिन्न निवेशों से प्राप्त होने वाला ब्याज है,
जो रेलवे की कुल आय में योगदान करता है।
इसके अतिरिक्त अन्य
विविध आय भी रेलवे की आय का हिस्सा होती
है। इसमें दंड, शुल्क और ट्रैक एक्सेस चार्जेस (Track Access Charges)
जैसी मदें शामिल हैं, जो रेलवे के संचालन और
वित्तीय संसाधनों के लिए सहायक होती हैं।
4. आय का
क्षेत्रीय वितरण (Regional Distribution of Revenue)
रेलवे का राजस्व विभिन्न
जोनों में विभिन्न स्रोतों से उत्पन्न होता है। पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी ज़ोन में
मुख्य रूप से कोयला और खनिज ढुलाई से अधिकतम आय होती है, जबकि
पश्चिमी और उत्तरी ज़ोन में औद्योगिक माल, जैसे पेट्रोलियम,
सीमेंट और कंटेनर यातायात, राजस्व का प्रमुख
स्रोत हैं। महानगरीय क्षेत्रों में उपनगरीय यात्री सेवाओं का महत्वपूर्ण योगदान
राजस्व में देखा जाता है।
5. माल और
यात्री आय का तुलनात्मक विश्लेषण (Freight vs Passenger Revenue)
भारतीय
रेलवे के वित्तीय ढाँचे का मुख्य आधार माल भाड़ा है। कुल आय में इसका योगदान लगभग 70% है। इसके
विपरीत, यात्री आय
मात्र 25–30% रहती है।
माल भाड़ा
आय वाणिज्यिक सिद्धांतों पर आधारित है और इसका मूल्य निर्धारण प्रतिस्पर्धा और
माँग–आपूर्ति की स्थिति पर होता है। जबकि यात्री किराए का निर्धारण सामाजिक और
राजनीतिक कारकों से प्रभावित होता है।
कोविड-19 महामारी के
बाद माल भाड़ा में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज हुई, जबकि यात्री आय में भारी गिरावट आई। हालाँकि, वंदे भारत जैसी प्रीमियम सेवाओं से यात्री आय में सुधार की संभावना है।
6. गैर-भाड़ा
आय की बढ़ती भूमिका (Rising Role of Non-Fare Revenue)
रेलवे की Vision 2030 रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि भविष्य में रेलवे की
वित्तीय स्थिरता में गैर-भाड़ा आय की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। इस संदर्भ में,
IRCTC की ई-कैटरिंग और टूर पैकेज, स्टेशन
परिसरों में मॉल, ऑफिस स्पेस और होटल, तथा
स्मार्ट स्टेशनों से प्राप्त रिटेल और विज्ञापन आय जैसे स्रोत शामिल हैं। ये विविध
आय स्रोत रेलवे को केवल भाड़ा आधारित राजस्व पर निर्भर रहने से मुक्त कर, आर्थिक मजबूती प्रदान करेंगे और रेलवे के आधुनिककरण तथा सेवाओं के विस्तार
में सहायक होंगे।
7. आधुनिक
सुधार, चुनौतियाँ, भविष्य की दिशा और
विशेष परिप्रेक्ष्य – IRCTC का राजस्व मॉडल
भारतीय रेलवे ने राजस्व
सृजन (Revenue Generation) को मज़बूत करने
हेतु अनेक आधुनिक सुधार लागू किए हैं। डिजिटल टिकटिंग और ई-कॉमर्स से न केवल पारदर्शिता बढ़ी है बल्कि आय में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। PPP मॉडल के माध्यम से स्टेशन पुनर्विकास और कंटेनर ढुलाई में
निजी निवेश को प्रोत्साहन दिया गया है। Dedicated Freight
Corridors (DFC) के निर्माण से
माल यातायात की क्षमता और गति में वृद्धि हुई है, जबकि High-Speed Rail परियोजनाएँ प्रीमियम सेवाओं के माध्यम से आय का नया
स्रोत प्रदान करती हैं। इसके अतिरिक्त, रेलवे द्वारा Renewable Energy Projects—जैसे सौर और पवन ऊर्जा—में निवेश किया गया है, जिससे दीर्घकालिक रूप से आय और ऊर्जा बचत दोनों संभव
हैं।
फिर भी, रेलवे के राजस्व के संदर्भ में कई चुनौतियाँ बनी हुई
हैं। सबसे बड़ी चुनौती यह है कि यात्री किराया सामाजिक और
राजनीतिक कारणों से अपेक्षित स्तर तक बढ़ाना कठिन होता है। इसके साथ ही, माल ढुलाई में सड़क और हवाई परिवहन से तीव्र
प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है। दूसरी ओर, परिचालन लागत लगातार बढ़ रही
है और पेंशन तथा वेतन व्यय आय का बड़ा हिस्सा खा जाते हैं। पूँजीगत निवेश की विशाल
आवश्यकता भी रेलवे के वित्तीय संतुलन को चुनौती देती है।
भविष्य की दिशा में
रेलवे को आय के विविध स्रोत विकसित करने होंगे। डायनेमिक प्राइसिंग की व्यवस्था से
माँग-आधारित किराया प्रणाली अपनाई जा सकती है। Diversified Non-Fare Revenue के तहत भूमि, विज्ञापन और
लॉजिस्टिक्स जैसे स्रोतों से अतिरिक्त आय उत्पन्न की जा सकती है। Freight Rationalization द्वारा उद्योगों को आकर्षित करने के लिए प्रतिस्पर्धी दरें तय की जानी चाहिए।
साथ ही, Tourism Promotion
के
अंतर्गत लग्ज़री और थीम-आधारित ट्रेनों का संचालन नई आय के अवसर प्रदान करेगा।
इसके अतिरिक्त, Renewable
Energy Projects से अतिरिक्त ऊर्जा की बिक्री द्वारा भी राजस्व प्राप्त किया
जा सकता है।
विशेष परिप्रेक्ष्य में, IRCTC का राजस्व मॉडल उल्लेखनीय है। यह केवल
टिकटिंग तक सीमित नहीं है, बल्कि कैटरिंग सेवाएँ, टूर पैकेज, विज्ञापन और ऑनलाइन
सेवाएँ भी इसके प्रमुख
आय स्रोत हैं। हाल के वर्षों में IRCTC
ने
रेलवे को भारी लाभांश (Dividend)
प्रदान
किया है। यह उदाहरण दर्शाता है कि गैर-भाड़ा आय (Non-Fare Revenue) रेलवे के वित्तीय ढाँचे को मज़बूत बनाने में निर्णायक
भूमिका निभा सकती है।
8. निष्कर्ष (Conclusion)
भारतीय
रेलवे की आय संरचना बहुआयामी और व्यापक है। माल ढुलाई इसकी रीढ़ है, यात्री
सेवाएँ सामाजिक दायित्व निभाती हैं, और गैर-भाड़ा आय भविष्य का प्रमुख स्तंभ बन रही है। वर्तमान परिस्थितियों में
रेलवे के लिए चुनौती यह है कि वह आय के नए स्रोत विकसित करे, तकनीकी
नवाचार अपनाए और निजी क्षेत्र की भागीदारी (PPP) को प्रोत्साहित करे। यदि रेलवे इस दिशा में सफल होता है, तो न केवल
उसकी वित्तीय स्थिति सुदृढ़ होगी बल्कि यह भारत की आर्थिक प्रगति और सामाजिक विकास
में और अधिक प्रभावी योगदान देगा।
