अध्याय 20
वित्तीय शक्तियाँ एवं प्रत्यायोजन (Financial
Powers & Delegation)
भारतीय रेल
विश्व की सबसे बड़ी सार्वजनिक परिवहन प्रणालियों में से एक है, जो प्रतिदिन
लाखों यात्रियों और हज़ारों टन माल का परिवहन करती है। इसके संचालन के लिए
प्रतिदिन असीमित वित्तीय लेन-देन, खरीद-फरोख्त, वेतन वितरण, रख-रखाव, अनुबंध
स्वीकृतियाँ और पूंजीगत व्यय होते हैं। इतनी विशाल आर्थिक गतिविधि को केवल
मंत्रालय स्तर या रेलवे बोर्ड (Railway
Board) तक सीमित रखकर संचालित करना न तो व्यावहारिक है और न ही कुशल। इसी कारण
वित्तीय शक्तियों का प्रत्यायोजन (Delegation of Financial Powers) आवश्यक हो जाता है।
वित्तीय प्रत्यायोजन का आशय है – निर्णय लेने की शक्ति का विभिन्न प्रशासनिक स्तरों पर वितरण, ताकि कार्य समय पर हो सके, पारदर्शिता बनी रहे और उत्तरदायित्व स्पष्ट हो। भारतीय रेल का वित्तीय ढाँचा इस प्रकार निर्मित है कि इसमें एक ओर संसद द्वारा स्वीकृत बजट (Budget Grants) होता है, तो दूसरी ओर रेलवे बोर्ड, ज़ोनल रेलवे, डिवीजनल रेलवे तथा फील्ड स्तर के अधिकारी अपनी निर्धारित शक्तियों के अनुसार व्यय एवं अनुमोदन करते हैं। इस प्रक्रिया से न केवल कार्यकुशलता (Efficiency) बढ़ती है, बल्कि वित्तीय अनुशासन (Financial Discipline) भी सुनिश्चित होता है।
1. वित्तीय
प्रत्यायोजन का महत्व (Importance of Delegation of Financial Powers)
भारतीय रेल
जैसी व्यापक संस्था में वित्तीय प्रत्यायोजन अनेक दृष्टियों से अनिवार्य है।
प्रशासनिक
दक्षता (Administrative
Efficiency): यदि
प्रत्येक छोटे व्यय या अनुबंध के लिए रेलवे बोर्ड से अनुमति लेनी पड़े, तो निर्णयों
में अत्यधिक विलंब होगा। प्रत्यायोजन के माध्यम से डिवीजनल रेलवे मैनेजर (DRM) या जनरल
मैनेजर (GM) अपने स्तर
पर निर्णय ले सकते हैं। इससे त्वरित कार्यान्वयन संभव होता है।
वित्तीय
अनुशासन (Financial
Discipline): जब किसी
अधिकारी को वित्तीय शक्ति दी जाती है, तो वह अपने स्तर पर अनुमोदन करते समय रेलवे वित्तीय कोड और प्रत्यायोजन नियमों
(Delegation of Financial
Powers Rules) का पालन करने हेतु बाध्य होता है। इससे व्यय पर निगरानी बनी रहती है।
जवाबदेही (Accountability): प्रत्यायोजित
शक्तियाँ अधिकारी की जिम्मेदारी भी तय करती हैं। किसी भी व्यय या अनुबंध में
गड़बड़ी पाए जाने पर उत्तरदायित्व संबंधित अधिकारी का होता है। यह व्यवस्था ‘ऑडिट
ट्रेल’ (Audit
Trail) को सुनिश्चित करती है।
विकेंद्रीकरण
(Decentralization): केंद्रीय
स्तर से कार्यभार कम होकर स्थानीय इकाइयों में बाँटा जाता है। इससे प्रत्येक स्तर
पर अधिकार और उत्तरदायित्व संतुलित रहता है।
पारदर्शिता
(Transparency): जब प्रत्येक
स्तर पर स्वीकृति की स्पष्ट सीमा तय हो, तो कोई भी अनुचित व्यय छिप नहीं सकता। अनुमोदन की प्रक्रिया दस्तावेज़ीकृत
रहती है और ऑडिट के लिए उपलब्ध रहती है।
2. वित्तीय
शक्तियों का स्रोत (Sources of Financial Powers)
भारतीय रेल
में वित्तीय शक्तियों का निर्धारण किसी व्यक्तिगत निर्णय पर आधारित नहीं, बल्कि
आधिकारिक नियमों और कोड पर आधारित है।
- रेलवे
अधिनियम (Railways
Act): यह
अधिनियम रेलवे प्रशासन को कानूनी रूप से वैधता और अधिकार प्रदान करता है।
- रेलवे
वित्तीय कोड (Railway
Financial Code – RFC): इसमें रेलवे में लेखांकन, बजट
प्रबंधन और व्यय अनुमोदन की संपूर्ण रूपरेखा दी गई है।
- भारतीय
रेल प्रत्यायोजन नियम (Indian Railway Delegation of Financial Powers Rules – DFPR): यह
नियमावली बताती है कि किस अधिकारी के पास कितनी सीमा तक वित्तीय शक्ति होगी।
- रेलवे
बोर्ड के परिपत्र एवं आदेश: समय-समय पर रेलवे बोर्ड (Railway Board) द्वारा
जारी निर्देश वित्तीय शक्तियों की व्याख्या और संशोधन करते हैं।
- संसद
द्वारा पारित बजट अनुदान: संसद (Parliament) द्वारा स्वीकृत राशि ही अंतिम सीमा होती है, जिसके
भीतर सभी व्यय किए जाते हैं।
3. वित्तीय
शक्तियों का वर्गीकरण (Classification of Financial Powers)
भारतीय रेल
में वित्तीय शक्तियों को मुख्यतः चार वर्गों में बाँटा जा सकता है।
(क) प्रशासनिक शक्तियाँ (Administrative Powers):
ये शक्तियाँ
कर्मचारियों की नियुक्ति, वेतन वृद्धि, भत्तों और
यात्रा व्यय से संबंधित होती हैं। उदाहरण के लिए, DRM को अपने डिवीजन में कुछ श्रेणी के कर्मचारियों की नियुक्ति अथवा स्थानांतरण की
अनुमति होती है।
(ख) व्यय शक्तियाँ (Expenditure
Powers):
यह श्रेणी
विभागीय कार्यों पर व्यय करने की सीमा तय करती है। जैसे कि इंजीनियरिंग विभाग को
निश्चित राशि तक के रख-रखाव कार्यों के लिए अनुमति होती है।
(ग) अनुबंध शक्तियाँ (Contractual Powers):
इन शक्तियों के अंतर्गत ठेकों (Contracts), निविदाओं (Tenders) और आपूर्ति
आदेशों (Supply
Orders) की स्वीकृति आती है। निविदा की राशि जितनी बड़ी होगी, स्वीकृति का
स्तर उतना ऊँचा होगा।
(घ) आपातकालीन शक्तियाँ (Emergency Powers):
दुर्घटनाओं, प्राकृतिक
आपदाओं या युद्ध जैसी स्थितियों में समय पर निर्णय लेने के लिए अधिकारियों को
विशेष शक्तियाँ मिलती हैं। DRM और GM इस श्रेणी
के प्रमुख अधिकारी हैं।
4. वित्तीय
शक्तियों का स्तरवार वितरण (Level-wise Delegation of Financial Powers)
(क) रेलवे बोर्ड स्तर:
रेलवे बोर्ड
नीति निर्माण, बड़े अनुबंध, परियोजनाओं
की स्वीकृति और बजट अनुमोदन का कार्य करता है। उच्चतम मूल्य के अनुबंधों और
पूंजीगत व्ययों पर निर्णय यहीं से होता है।
(ख) ज़ोनल रेलवे स्तर:
GM के पास व्यापक वित्तीय शक्तियाँ
होती हैं। वे ज़ोनल परियोजनाओं, अनुबंधों और बड़े व्ययों को स्वीकृत करते हैं। उनके साथ FA&CAO होते हैं, जो वित्तीय
परामर्श और नियंत्रण का कार्य करते हैं।
(ग) डिवीजनल स्तर:
डिवीजनल
रेलवे मैनेजर (DRM) अपने डिवीजन
में सीमित मूल्य के अनुबंधों और परियोजनाओं की स्वीकृति देते हैं। उनके अधीन Sr.DFM (Senior Divisional
Finance Manager) वित्तीय सलाह और आंतरिक नियंत्रण के लिए उत्तरदायी होते हैं।
(घ) स्टेशन एवं फील्ड स्तर:
स्टेशन
मास्टर, इंजीनियरिंग
और अन्य विभागीय अधिकारी छोटे स्तर के व्ययों का अनुमोदन कर सकते हैं। ये शक्तियाँ
तात्कालिक आवश्यकताओं और यात्रियों की सुविधा के लिए दी जाती हैं।
5. वित्तीय
प्रत्यायोजन के सिद्धांत (Principles of Delegation of Financial Powers)
- आवश्यकता
आधारित (Need-based): अधिकारी
को उतनी ही शक्ति दी जाए जितनी उसके कार्यों की पूर्ति के लिए आवश्यक है।
- जवाबदेही
(Accountability): हर
व्यय की जिम्मेदारी स्वीकृति देने वाले अधिकारी पर होगी।
- न्यूनतम
स्तर पर निर्णय (Decision
at Lowest Level): ताकि
अनावश्यक विलंब न हो और कार्य शीघ्र संपन्न हो।
- वित्तीय
नियमों का पालन (Adherence
to Financial Rules): सभी
निर्णय Railway
Financial Code और अन्य नियमों के अनुरूप हों।
- ऑडिट
और निगरानी (Audit
& Monitoring): समय-समय
पर आंतरिक और बाहरी ऑडिट से पारदर्शिता सुनिश्चित की जाती है।
6. वित्तीय
शक्तियों की सीमाएँ (Limits of Financial Powers)
- प्रत्येक
अधिकारी केवल अपनी निर्धारित सीमा तक ही व्यय कर सकता है।
- उच्च
मूल्य के कार्यों हेतु उच्च अधिकारी या रेलवे बोर्ड की स्वीकृति आवश्यक है।
- किसी
भी स्थिति में स्वीकृत बजट (Budgetary Grant) से अधिक व्यय नहीं किया जा सकता।
- आपातकालीन
शक्तियों का प्रयोग भी औचित्य और पारदर्शिता की कसौटी पर परखा जाता है।
7. विशेष
प्रावधान (Special Provisions)
(क) आपातकालीन शक्तियाँ:
दुर्घटना, प्राकृतिक
आपदा या सुरक्षा संबंधी स्थितियों में DRM और GM को अतिरिक्त
शक्तियाँ प्राप्त होती हैं।
(ख) अनुबंध शक्तियाँ (Contractual Powers):
निविदा सीमा
(Tender Limit) के आधार पर
स्वीकृति का स्तर बदलता है। छोटे अनुबंध डिवीजन स्तर पर, जबकि बड़े
अनुबंध GM या बोर्ड
स्तर पर स्वीकृत होते हैं।
(ग) पुनर्विनियोजन शक्तियाँ (Re-appropriation Powers):
कभी-कभी एक
बजट मद में बची राशि को दूसरे मद में स्थानांतरित करना आवश्यक होता है। इसके लिए
अधिकारियों को पुनर्विनियोजन की अनुमति दी जाती है।
8. आधुनिक
परिप्रेक्ष्य में प्रत्यायोजन (Delegation in Modern Context)
भारतीय रेल
ने डिजिटल युग की आवश्यकताओं के अनुरूप वित्तीय प्रत्यायोजन की प्रणाली को भी
आधुनिक बनाया है।
1. ई-ऑफिस और ई-फाइल
सिस्टम: फाइलों की
डिजिटली प्रक्रिया से अनुमोदन शीघ्र होता है और पारदर्शिता बनी रहती है।
2. ई-प्रोक्योरमेंट (E-Procurement): निविदाओं और ठेकों की पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन होती है, जिससे भ्रष्टाचार की संभावना कम होती है।
3. IFMS और IPAS: एकीकृत वित्तीय प्रबंधन प्रणाली (Integrated Financial Management System – IFMS) और Indian Railways Passenger Accounting System
(IPAS) के माध्यम से व्ययों का स्वचालित नियंत्रण होता है।
4. MIS Reports: प्रबंधन सूचना प्रणाली (Management Information System) वास्तविक समय
में व्ययों और अनुमोदनों की निगरानी करती है।
9. वित्तीय
प्रत्यायोजन की चुनौतियाँ, भविष्य की दिशा और केस स्टडी
भारतीय रेलवे जैसे विशाल
संगठन में वित्तीय प्रत्यायोजन (Delegation
of Financial Powers) अत्यंत आवश्यक है, ताकि त्वरित निर्णय लिए जा सकें और संसाधनों का प्रभावी उपयोग हो। हालाँकि, इसके साथ अनेक चुनौतियाँ भी जुड़ी हुई हैं। सबसे पहले, विभिन्न स्तरों पर शक्तियों का असमान वितरण निर्णय प्रक्रिया को
असंतुलित बना देता है। कई बार अधिकारियों द्वारा नियमों की अपर्याप्त समझ और प्रशिक्षण की कमी भी अनियमितताओं का कारण
बनती है। आपातकालीन शक्तियों के प्रयोग में दुरुपयोग की संभावना
हमेशा
बनी रहती है। इसके अतिरिक्त, अभी तक सभी
डिवीजनों और ज़ोन में डिजिटल
प्रणालियों का पूर्ण कार्यान्वयन नहीं हुआ है, जिससे
पारदर्शिता और निगरानी प्रभावित होती है। अंततः, ऑडिट आपत्तियाँ और वित्तीय अनियमितताएँ प्रत्यायोजन प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लगाती हैं।
भविष्य की दिशा में
रेलवे को वित्तीय प्रत्यायोजन को और अधिक पारदर्शी एवं परिणामोन्मुख बनाने की
आवश्यकता है। डिजिटल
प्रत्यायोजन (E-Delegation) के माध्यम से
सभी स्वीकृतियाँ एकीकृत ऑनलाइन पोर्टल पर उपलब्ध कराई जानी चाहिए, जिससे प्रक्रिया सरल और पारदर्शी बने। कृत्रिम बुद्धिमत्ता
आधारित निगरानी (AI-based
Monitoring) से असामान्य व्ययों की स्वतः पहचान संभव हो सकेगी। नियमों का सरलीकरण आवश्यक है ताकि सभी स्तरों के अधिकारी उन्हें आसानी
से समझ और लागू कर सकें। इसके साथ ही, प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण (Capacity
Building) के अंतर्गत अधिकारियों को वित्तीय नियमों और डिजिटल उपकरणों का गहन प्रशिक्षण
दिया जाना चाहिए। अंततः, परिणामोन्मुख
प्रत्यायोजन (Outcome-oriented
Delegation) के माध्यम से केवल राशि पर नहीं, बल्कि व्यय से प्राप्त परिणामों पर आधारित मूल्यांकन सुनिश्चित किया जाना
चाहिए।
विशेष परिप्रेक्ष्य के
रूप में, 2015 में चेन्नई में
आई बाढ़ का उदाहरण
उल्लेखनीय है। इस आपदा के दौरान रेलवे की सेवाएँ गंभीर रूप से प्रभावित हुईं। उस
समय Divisional Railway Manager
(DRM) और General Manager (GM) को प्रदत्त
आपातकालीन वित्तीय शक्तियों का उपयोग कर त्वरित निर्णय लिए गए। राहत कार्यों, ट्रैक की मरम्मत, पुलों की सुरक्षा और यात्री सुविधाओं की बहाली पर तत्काल व्यय किया गया। यह
उदाहरण स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि प्रत्यायोजित वित्तीय शक्तियाँ आपदा प्रबंधन
और सेवाओं की त्वरित पुनर्बहाली के लिए कितनी महत्त्वपूर्ण हैं।
10. निष्कर्ष (Conclusion)
भारतीय रेल
का वित्तीय ढाँचा इतना जटिल और विशाल है कि इसे केवल केंद्रीय स्तर से नियंत्रित
करना संभव नहीं। वित्तीय प्रत्यायोजन ने इस जटिलता को सरल किया है और प्रशासनिक
दक्षता, वित्तीय
अनुशासन तथा पारदर्शिता सुनिश्चित की है। यदि प्रत्येक अधिकारी अपनी सीमा और
नियमों के भीतर रहते हुए निर्णय ले, तो भारतीय रेल न केवल वित्तीय दृष्टि से सुदृढ़ रहेगी बल्कि अपने संचालन में
और भी कुशल, पारदर्शी
तथा उत्तरदायी बनेगी।
आधुनिक
डिजिटल प्रणालियों जैसे ई-ऑफिस, ई-प्रोक्योरमेंट, IFMS और AI आधारित
निगरानी से प्रत्यायोजन की प्रक्रिया और प्रभावी होगी। भविष्य में, रेलवे की
वित्तीय प्रणाली न केवल व्यय प्रबंधन तक सीमित रहेगी, बल्कि
परिणाम आधारित मूल्यांकन (Outcome-based
Evaluation) पर भी केंद्रित होगी। इस प्रकार वित्तीय प्रत्यायोजन भारतीय रेल की प्रगति और
सतत विकास का अभिन्न अंग बना रहेगा।
