अध्याय 25
रेलवे में अनुबंध प्रबंधन एवं क्रय प्रणाली (Contract
Management & Procurement System in Railways)
भारतीय रेल
(Indian Railways) विश्व की
सबसे बड़ी रेलवे प्रणालियों में से एक है, जो प्रतिदिन करोड़ों यात्रियों और लाखों टन माल की ढुलाई करती है। इतने विशाल
नेटवर्क और विविध गतिविधियों के सुचारु संचालन के लिए संसाधनों, सेवाओं और
कार्यों की समय पर उपलब्धता आवश्यक है। यह उपलब्धता प्रायः अनुबंध प्रबंधन (Contract Management) और क्रय
प्रणाली (Procurement
System) के माध्यम से सुनिश्चित की जाती है। रेलवे प्रतिवर्ष हज़ारों करोड़ रुपये
मूल्य की सामग्रियाँ, उपकरण, निर्माण
कार्य तथा सेवाएँ अनुबंधों द्वारा प्राप्त करता है। इस परिप्रेक्ष्य में अनुबंध
प्रबंधन और क्रय प्रणाली केवल वित्तीय लेनदेन का विषय नहीं है, बल्कि यह
संगठन की कार्यकुशलता, पारदर्शिता, उत्तरदायित्व
और दीर्घकालिक विकास से भी जुड़ा हुआ है।
रेलवे बोर्ड
(Railway Board), भारतीय
रेलवे वित्त निगम (IRFC), ज़ोनल रेलवे, उत्पादन
इकाइयाँ, और डिवीजन
इस पूरी प्रणाली के प्रमुख अंग हैं। रेलवे की वित्तीय एवं प्रशासनिक संरचना, भारतीय
रेलवे वित्तीय कोड (Railway
Financial Code), भारतीय रेलवे स्टोर कोड (Indian
Railway Stores Code), Delegation of Financial Powers Rules (DFPR) और General Financial Rules (GFRs) जैसी
आधिकारिक नियमावली पर आधारित है।
इस अध्याय में अनुबंध प्रबंधन और क्रय प्रणाली की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, वर्तमान ढाँचा, प्रक्रियाएँ, चुनौतियाँ, आधुनिक सुधार तथा भविष्य की दिशा पर विस्तृत चर्चा प्रस्तुत की जा रही है।
1. अनुबंध
प्रबंधन का महत्व (Importance of Contract Management)
भारतीय रेल
जैसे विशाल संगठन में अनुबंध प्रबंधन का महत्व बहुआयामी है।
सबसे पहले, यह संसाधनों
की समय पर उपलब्धता सुनिश्चित करता है। रेलवे का संचालन प्रतिदिन लाखों छोटे-बड़े
कार्यों पर आधारित है – ट्रैक और लोकोमोटिव के पुर्ज़ों से लेकर स्टेशन के रख-रखाव
तक। यदि आवश्यक सामग्री अथवा सेवाएँ समय पर उपलब्ध न हों तो न केवल परियोजनाएँ
विलंबित होती हैं, बल्कि
यात्री और माल यातायात भी प्रभावित होता है।
दूसरे, अनुबंध
प्रणाली वित्तीय नियंत्रण का एक सशक्त माध्यम है। प्रतिस्पर्धात्मक बोली प्रक्रिया
(Competitive Bidding Process)
से व्यय का उचित निर्धारण होता है और अनावश्यक लागत वृद्धि पर अंकुश लगता है।
रेलवे का वार्षिक बजट लाखों करोड़ रुपये का होता है; ऐसे में हर अनुबंध की पारदर्शिता और वित्तीय अनुशासन अनिवार्य है।
तीसरे, यह गुणवत्ता
सुनिश्चित करने का आधार है। अनुबंध की शर्तों में तकनीकी मानक , निरीक्षण
प्रक्रिया (Inspection
Process), और गारंटी शर्तें (Warranty
Clauses) शामिल होती हैं, जिससे यह
सुनिश्चित होता है कि आपूर्ति या कार्य वांछित स्तर का हो।
चौथे, अनुबंध
कानूनी सुरक्षा (Legal
Safeguard) प्रदान करता है। किसी विवाद की स्थिति में अनुबंध ही दोनों पक्षों के अधिकारों
और कर्तव्यों का आधार बनता है। रेलवे जैसे सार्वजनिक संगठन के लिए यह विशेष रूप से
महत्वपूर्ण है।
अंततः, अनुबंध
परियोजनाओं के समयबद्ध निष्पादन को सुनिश्चित करता है। यदि अनुबंध में स्पष्ट
समयसीमा और दंड प्रावधान (Penalty
Clauses) हों, तो कार्य
समय पर पूरा होता है, जिससे संगठन
की साख और जनता का विश्वास बना रहता है।
2. रेलवे में
अनुबंधों के प्रकार (Types of Contracts in Railways)
भारतीय रेल
की विविध गतिविधियों के अनुरूप अनुबंधों के भी अनेक प्रकार होते हैं।
(क) आपूर्ति अनुबंध (Supply
Contracts):
इन अनुबंधों
के अंतर्गत रेलवे विभिन्न प्रकार की सामग्रियाँ खरीदता है – जैसे लोकोमोटिव और
वैगन के पुर्ज़े, ट्रैक
सामग्री (रेल, स्लीपर, फास्टनिंग), मशीनरी, ईंधन, कंप्यूटर
एवं आईटी उपकरण इत्यादि। भारतीय रेलवे स्टोर कोड इन अनुबंधों के लिए प्रमुख
मार्गदर्शक दस्तावेज़ है।
(ख) कार्य अनुबंध (Works
Contracts):
रेलवे के
बुनियादी ढाँचे के विकास में इन अनुबंधों की प्रमुख भूमिका होती है। नई रेल लाइनों
का निर्माण, विद्युतीकरण
(Electrification), पुलों एवं
स्टेशन भवनों का निर्माण, ट्रैक का
दोहरीकरण या गेज रूपांतरण, सभी कार्य
अनुबंधों द्वारा संपादित किए जाते हैं।
(ग) सेवा अनुबंध (Service
Contracts):
सेवा
अनुबंधों का महत्व बढ़ता जा रहा है। इसमें कैटरिंग (Catering), हाउसकीपिंग
(Housekeeping), सुरक्षा
सेवाएँ (Security
Services), आईटी सपोर्ट, लॉजिस्टिक्स
और मेंटेनेंस सेवाएँ शामिल हैं।
(घ) लीज अनुबंध (Lease
Contracts):
रेलवे अपनी
संपत्तियों – जैसे भूमि, भवन, कोच, और ट्रैक्ट
– का वाणिज्यिक उपयोग लीज अनुबंधों द्वारा करता है। उदाहरणस्वरूप, रेल नीलामी
प्रणाली के माध्यम से वाणिज्यिक प्लॉट या कोच लीज पर दिए जाते हैं।
3. अनुबंध
प्रबंधन की प्रक्रिया (Process of Contract Management)
अनुबंध
प्रबंधन एक सुव्यवस्थित प्रक्रिया है, जिसमें कई चरण शामिल हैं।
(क) आवश्यकता का आकलन (Assessment of Need):
सबसे पहले, विभागीय
प्रमुख (Head of
Department) द्वारा आवश्यकता का निर्धारण किया जाता है। इसके लिए तकनीकी औचित्य (Technical Justification) और वित्तीय
औचित्य (Financial
Justification) तैयार किए जाते हैं।
(ख) निविदा आमंत्रण (Tendering):
भारतीय रेल
में चार प्रकार की निविदा प्रणाली प्रचलित है:
- ओपन
टेंडर (Open
Tender): अधिकतम
प्रतिस्पर्धा और पारदर्शिता के लिए।
- लिमिटेड
टेंडर (Limited
Tender): विशेष
परिस्थितियों में सीमित विक्रेताओं से।
- सिंगल
टेंडर (Single
Tender): केवल
एक स्रोत से खरीद के लिए।
- ई-टेंडरिंग
(E-Tendering): IREPS पोर्टल
पर ऑनलाइन निविदा।
(ग) निविदा का मूल्यांकन (Evaluation of Tender):
इसमें
तकनीकी मूल्यांकन (Technical
Evaluation) और वित्तीय मूल्यांकन (Financial
Evaluation) दोनों होते हैं। तकनीकी मूल्यांकन में बोलीदाता की क्षमता, अनुभव और
तकनीकी मानकों की जाँच होती है, जबकि
वित्तीय मूल्यांकन में Lowest
Bidder (L1) का निर्धारण होता है।
(घ) अनुबंध का निष्पादन (Execution of Contract):
अनुबंध
स्वीकृत होने पर Purchase
Order / Work Order जारी किया जाता है। बोलीदाता को Performance Security जमा करनी होती है और औपचारिक Agreement किया जाता
है।
(ङ) अनुबंध की निगरानी (Monitoring of Contract):
इसमें Quality Check, Time Schedule की समीक्षा, Payment Milestone का आकलन, और Variation/Deviation का नियंत्रण
शामिल है।
(च) अनुबंध का समापन (Closure of Contract):
परियोजना
पूर्ण होने पर Final
Payment किया जाता है, Material
Reconciliation होती है, और Performance Guarantee वापस कर दी
जाती है।
4. क्रय
प्रणाली का ढाँचा (Procurement Framework in Railways)
भारतीय रेल
की क्रय प्रणाली तीन स्तरों पर कार्य करती है।
(क) केंद्रीकृत क्रय (Centralized Procurement):
रेलवे बोर्ड
और प्रमुख उत्पादन इकाइयाँ उच्च तकनीकी और महंगे सामान की खरीद करती हैं। जैसे –
इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव, सिग्नलिंग
उपकरण, और बड़े
मशीनरी आइटम।
(ख) विकेन्द्रीकृत क्रय (Decentralized Procurement):
ज़ोनल और
डिवीजनल रेलवे स्थानीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए छोटे पैमाने पर खरीद करते
हैं। यह प्रणाली लचीलापन और त्वरित प्रतिक्रिया प्रदान करती है।
(ग) ऑनलाइन क्रय प्रणाली (E-Procurement System):
2005 से IREPS
(Indian Railway E-Procurement System) लागू है, जिसके माध्यम से अधिकांश निविदाएँ और खरीद की जाती हैं। यह प्रणाली पारदर्शिता, प्रतिस्पर्धा
और त्वरित निर्णय सुनिश्चित करती है।
5. वित्तीय
नियम और अनुबंध प्रबंधन (Financial Rules in Contract Management)
भारतीय रेल
में अनुबंध प्रबंधन विभिन्न वित्तीय नियमों पर आधारित है:
- रेलवे
वित्तीय कोड (Railway
Financial Code): वित्तीय
कार्यों की मूल रूपरेखा।
- भारतीय
रेलवे स्टोर कोड (Indian
Railway Stores Code): खरीद, भंडारण
और निर्गमन संबंधी नियम।
- DFPR (Delegation of
Financial Powers Rules): किस स्तर पर कितनी वित्तीय स्वीकृति दी जा सकती है।
- General Financial Rules
(GFRs): भारत
सरकार द्वारा जारी सामान्य वित्तीय नियम।
6. अनुबंध
प्रबंधन में पारदर्शिता के उपाय
रेलवे ने
पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए कई कदम उठाए हैं:
- ई-टेंडरिंग
और ई-प्रोक्योरमेंट।
- निविदा
की सार्वजनिक सूचना और Standard
Bidding Documents (SBD)।
- CVC (Central Vigilance
Commission) के दिशा-निर्देश।
- ऑनलाइन
पेमेंट और ट्रैकिंग प्रणाली।
7. अनुबंध
प्रबंधन: चुनौतियाँ, आधुनिक सुधार, भविष्य
की दिशा और केस स्टडी
भारतीय रेल की अनुबंध प्रणाली अपने विशाल दायरे और
जटिलता के कारण अनेक चुनौतियों का सामना कर रही है। निविदा प्रक्रिया में अक्सर देरी होती है, जिससे परियोजनाओं की प्रगति प्रभावित होती है। कई बार
अनुबंध केवल Lowest Bidder (L1) को देने की
परंपरा गुणवत्ता पर प्रतिकूल असर डालती है। इसके अतिरिक्त, Variation और Escalation जैसी समस्याएँ अनुबंध
लागत को अनिश्चित बना देती हैं। अनुबंधों से जुड़े विवाद और मुकदमेबाज़ी भी समय और संसाधनों की बर्बादी का कारण बनते हैं।
सबसे गंभीर चुनौती है भ्रष्टाचार और
अपारदर्शिता, जो अनुबंध प्रणाली
की विश्वसनीयता को प्रभावित करती है।
इन चुनौतियों से निपटने
के लिए हाल के वर्षों में रेलवे ने कई आधुनिक सुधार (Modern
Reforms in Contract & Procurement System) लागू किए हैं। इनमें
सबसे महत्वपूर्ण है Indian
Railway E-Procurement System, जिसने निविदा प्रक्रिया को पूरी तरह डिजिटल बना दिया।
इसके साथ ही Reverse Auction की शुरुआत से
मूल्य निर्धारण अधिक प्रतिस्पर्धी हो गया है। अब केवल मूल्य पर नहीं बल्कि
गुणवत्ता और लागत दोनों पर ध्यान देने के लिए QCBS (Quality cum Cost Based Selection) पद्धति अपनाई गई है।
सामान्य वस्तुओं की खरीद हेतु रेलवे ने GeM (Government e-Marketplace) को अपनाया है, जिससे पारदर्शिता और मानकीकरण बढ़ा है। साथ ही, Vendor Development योजनाओं के अंतर्गत MSME और नए आपूर्तिकर्ताओं को भागीदारी के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।
भविष्य में रेलवे की
अनुबंध और क्रय प्रणाली और भी तकनीकी रूप से उन्नत
होने
जा रही है। AI आधारित टेंडर
स्क्रूटनी अनुबंधों के
मूल्यांकन को और अधिक सटीक और निष्पक्ष बनाएगी। अनुबंधों की पारदर्शिता और सुरक्षा
सुनिश्चित करने के लिए
Blockchain आधारित अनुबंध और Smart Contracts लागू किए जा सकते हैं।
भुगतान प्रणाली को तेज़ और विश्वसनीय बनाने के लिए E-Payment Systems को और व्यापक किया जाएगा। साथ ही, Green Procurement के माध्यम से
पर्यावरण-अनुकूल सामग्रियों और सेवाओं को प्राथमिकता मिलेगी। अंतरराष्ट्रीय
प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने के लिए International Competitive Bidding (ICB) को भी व्यापक स्तर पर
लागू करने की योजना है।
एक विशेष केस स्टडी इस संदर्भ में उल्लेखनीय है। वर्ष 2005 में रेलवे ने IREPS (Indian Railway E-Procurement System) लागू किया, जिसने निविदा प्रक्रिया को पूर्णतः डिजिटल बना दिया।
इस सुधार से भ्रष्टाचार की संभावनाएँ घटीं, पारदर्शिता बढ़ी और निविदा प्रक्रिया अधिक तेज़ एवं कुशल बनी। आज अधिकांश
अनुबंध इसी प्रणाली के माध्यम से संपन्न होते हैं। यह उदाहरण दर्शाता है कि डिजिटल
प्लेटफ़ॉर्म न केवल दक्षता बढ़ाते हैं बल्कि वित्तीय अनुशासन और पारदर्शिता भी
सुनिश्चित करते हैं।
8. निष्कर्ष (Conclusion)
भारतीय रेल
की अनुबंध प्रबंधन और क्रय प्रणाली संगठन की वित्तीय स्थिरता, गुणवत्ता, और
समयबद्धता के लिए रीढ़ की हड्डी के समान है। पारंपरिक प्रक्रियाओं से लेकर आधुनिक
डिजिटल प्लेटफॉर्म तक, इस प्रणाली
ने निरंतर विकास किया है। भविष्य में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence), ब्लॉक चेन (Blockchain), और ग्रीन
प्रोक्योरमेंट जैसी अवधारणाएँ इसे और भी पारदर्शी, कुशल और उत्तरदायी बनाएगी। रेलवे के लिए यह न केवल एक प्रशासनिक आवश्यकता है, बल्कि जनता
के प्रति सेवा की गुणवत्ता सुनिश्चित करने का भी साधन है।
