अध्याय 26 - स्टोर लेखा एवं भंडार प्रबंधन (Stores Accounting & Inventory Management)

 

अध्याय 26

स्टोर लेखा एवं भंडार प्रबंधन 

(Stores Accounting & Inventory Management)


भारतीय रेल विश्व का चौथा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है, जो प्रतिदिन लाखों यात्रियों और भारी मात्रा में माल का परिवहन करता है। इस संचालन के पीछे एक विशाल वित्तीय और भौतिक ढाँचा कार्य करता है, जिसमें से एक सबसे महत्त्वपूर्ण और जटिल क्षेत्र है स्टोर लेखा एवं भंडार प्रबंधन । रेलवे के पास लाखों प्रकार की सामग्रियाँ (Materials) होती हैं – जिनमें लोकोमोटिव और कोच के स्पेयर पार्ट्स, इंजीनियरिंग उपकरण, इलेक्ट्रिकल सामान, सिग्नल और दूरसंचार (S&T) उपकरण, पेंट, ईंधन, स्टेशनरी और सुरक्षा सामग्री शामिल हैं।

इन विविध सामग्रियों का व्यवस्थित प्रबंधन केवल कुशल भंडार प्रबंधन प्रणाली और सटीक स्टोर लेखा व्यवस्था के माध्यम से ही संभव है। यह व्यवस्था न केवल सामग्रियों की समय पर उपलब्धता सुनिश्चित करती है, बल्कि रेलवे के वित्तीय अनुशासन, पारदर्शिता और संसाधनों के सर्वोत्तम उपयोग की गारंटी भी देती है। यही कारण है कि भारतीय रेल के Indian Railway Stores Code, Accounts Code तथा रेलवे बोर्ड द्वारा समय-समय पर जारी निर्देशों में इस विषय को विशेष महत्त्व दिया गया है।

परिभाषा (Definition)

भंडार प्रबंधन (Stores Management) वह प्रणाली है जिसके अंतर्गत रेलवे की आवश्यक सभी सामग्रियों की खरीद (Procurement), भंडारण (Storage), निर्गमन (Issue) और निपटान (Disposal) किया जाता है।

यह संपूर्ण व्यवस्था Indian Railway Stores Code और रेलवे बोर्ड (Railway Board) के परिपत्रों द्वारा नियंत्रित होती है।

उद्देश्य (Objectives of Stores Management)

भंडार प्रबंधन के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं –

  1. समय पर उपलब्धता (Timely Availability): संचालन और उत्पादन की निरंतरता बनाए रखने के लिए सही समय पर सामग्री की उपलब्धता।
  2. लागत-कुशलता (Cost Economy): अनावश्यक भंडारण या पूँजी फँसने से बचाव, और न्यूनतम लागत पर सामग्री उपलब्ध कराना।
  3. मानकीकरण (Standardization): सभी विभागों में उपयोग की जाने वाली सामग्री की एकरूपता और गुणवत्ता सुनिश्चित करना।
  4. नियंत्रण एवं जवाबदेही (Control & Accountability): सामग्री की खरीद, उपयोग, स्टॉक और स्क्रैप निपटान में पारदर्शिता और जिम्मेदारी तय करना।
  5. लेखा-परीक्षण की सुविधा (Auditability): अभिलेख ऐसे संधारित करना कि C&AG Audit और Internal Audit सुचारू रूप से हो सकें।

स्टोर संगठन की संरचना (Organisation of Stores Department)

भारतीय रेल का स्टोर संगठन केन्द्रीयकृत और विकेन्द्रीकृत संरचना का मिश्रण है।

  • प्रत्येक ज़ोनल रेलवे (Zonal Railway) और उत्पादन इकाई (Production Unit) में Controller of Stores (COS) विभागाध्यक्ष होते हैं।
  • मंडल स्तर (Divisional Level) पर Divisional Stores Officer (DSO) कार्य करते हैं।
  • डिपो और वर्कशॉप स्तर पर Depot Officer अथवा Stores Superintendent जिम्मेदारी निभाते हैं।

COS का कार्य केवल खरीद तक सीमित नहीं होता, बल्कि सामग्री की गुणवत्ता, भंडारण, निर्गमन और स्क्रैप निस्तारण तक फैला होता है। रेलवे के कुल व्यय का लगभग 20–25% हिस्सा स्टोर प्रबंधन और क्रय गतिविधियों पर खर्च होता है (स्रोत: Indian Railways Budget Documents, Ministry of Railways)

सामग्री प्रबंधन चक्र (Material Management Cycle)

भंडार प्रबंधन का जीवन चक्र कई चरणों में विभाजित है:

  1. मांग उठाना (Indenting): उपयोगकर्ता विभाग (जैसे वर्कशॉप, लोको शेड, इंजीनियरिंग डिवीजन) Material Demand Note (MDN) तैयार कर COS कार्यालय को भेजता है।
  2. क्रय प्रक्रिया (Procurement): COS कार्यालय निविदा (Tender) निकालता है। वर्तमान में खरीद प्रक्रिया मुख्यतः IREPS (Indian Railways e-Procurement System) और GeM (Government e-Marketplace) पर आधारित है।
  3. सामग्री प्राप्ति (Receipt): सामग्री आने पर Material Receipt Note (MRN) या Goods Receipt Note (GRN) जारी होता है। मात्रा और गुणवत्ता का निरीक्षण किया जाता है।
  4. भंडारण (Custody/Storage): सामग्री का रिकॉर्ड Bin Card और Stock Ledger पर दर्ज होता है। सुरक्षित भंडारण, अग्नि सुरक्षा और बीमा की व्यवस्था की जाती है।
  5. निर्गमन (Issue): मांग के आधार पर विभाग को सामग्री जारी की जाती है। इसके लिए Issue Voucher (IV) और Gate Pass प्रयुक्त होते हैं।
  6. निपटान (Disposal): अनुपयोगी या स्क्रैप सामग्री का E-Auction के माध्यम से निपटान होता है। MSTC Ltd. और IREPS Portals का उपयोग किया जाता है।

स्टोर लेखा प्रणाली की आवश्यकता (Need for Stores Accounting System)

1. सामग्री की प्राप्ति और निर्गमन का रिकॉर्ड

स्टोर लेखा प्रणाली का पहला और सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य है सामग्री की प्राप्ति और निर्गमन का सटीक रिकॉर्ड रखना। रेलवे डिपो में जब कोई सामग्री आती है या किसी विभाग को निर्गमित की जाती है, तो उसका संपूर्ण विवरण दस्तावेज़ों तथा लेखा पुस्तिकाओं में दर्ज किया जाता है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि किस समय, किस मात्रा में और किस प्रयोजन के लिए सामग्री का उपयोग हुआ। इस रिकॉर्ड के अभाव में न तो सामग्री की उपलब्धता सुनिश्चित हो सकती है और न ही भविष्य की आवश्यकताओं का सही आकलन संभव होता है।

2. सामग्री की वास्तविक लागत और मूल्य निर्धारण

स्टोर लेखा प्रणाली का दूसरा महत्त्वपूर्ण पहलू है सामग्री की लागत और मूल्य निर्धारण। रेलवे में हजारों प्रकार की सामग्री खरीदी और उपयोग की जाती है। प्रत्येक वस्तु की खरीद लागत, परिवहन व्यय और भंडारण लागत मिलाकर उसकी वास्तविक कीमत निर्धारित की जाती है। यह जानकारी भविष्य की खरीद योजनाओं और बजट निर्माण में उपयोगी होती है। साथ ही, इससे यह भी पता चलता है कि सामग्री की आपूर्ति सबसे किफ़ायती स्रोत से हो रही है या नहीं।

3. स्टॉक स्तर की निगरानी

रेलवे के विशाल नेटवर्क में विभिन्न डिपो और वेयरहाउसों में सामग्री का संतुलित वितरण बनाए रखना आवश्यक है। स्टोर लेखा प्रणाली यह सुनिश्चित करती है कि किस डिपो में कितना स्टॉक उपलब्ध है और कहाँ कमी है। इसके साथ ही यह प्रणाली धीमी गति से चलने वाली वस्तुओं (Slow Moving Items) और तेजी से खपने वाली वस्तुओं (Fast Moving Items) की पहचान करने में भी सहायक है। इससे सामग्री प्रबंधन अधिक कुशल हो जाता है और अनावश्यक स्टॉक जमाव से बचाव होता है।

4. चोरी, हानि और अपव्यय पर नियंत्रण

स्टोर लेखा प्रणाली केवल सामग्री का रिकॉर्ड रखने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह चोरी, हानि और अपव्यय पर नियंत्रण का भी प्रभावी साधन है। जब प्रत्येक सामग्री का विवरण व्यवस्थित रूप से दर्ज होता है और समय-समय पर उसका सत्यापन किया जाता है, तो किसी भी अनियमितता या गड़बड़ी का तुरंत पता लगाया जा सकता है। यह व्यवस्था जवाबदेही सुनिश्चित करती है और संगठन में अनुशासन की भावना को मजबूत बनाती है।

5. वार्षिक लेखा परीक्षा और बजट रिपोर्टिंग

स्टोर लेखा प्रणाली का एक अन्य महत्त्वपूर्ण कार्य है वार्षिक लेखा परीक्षा और बजट रिपोर्टिंग को सुगम बनाना। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (C&AG) और रेलवे के आंतरिक लेखा संगठनों को सामग्री संबंधी सभी जानकारी इन्हीं अभिलेखों से मिलती है। इसके अलावा, बजट निर्माण के समय यह जानकारी आवश्यक होती है कि पिछले वर्ष कितनी सामग्री खरीदी गई, कितनी उपयोग हुई और भविष्य में कितनी आवश्यकता होगी। इस प्रकार, यह प्रणाली वित्तीय पारदर्शिता और जवाबदेही की गारंटी प्रदान करती है।

स्टोर प्रबंधन के मुख्य कार्य (Main Functions of Store Management)

1. क्रय (Procurement)

स्टोर प्रबंधन का सबसे पहला कार्य है आवश्यक सामग्रियों का क्रय। भारतीय रेल में यह प्रक्रिया मुख्य रूप से IREPS (Indian Railways e-Procurement System) और GeM (Government e-Marketplace) के माध्यम से की जाती है। इन ई-प्लेटफ़ॉर्म्स से खरीद प्रक्रिया पारदर्शी और प्रतिस्पर्धात्मक बनती है, जिससे गुणवत्तापूर्ण सामग्री उचित मूल्य पर प्राप्त होती है।

2. प्राप्ति (Receipt)

जब सामग्री आपूर्तिकर्ता से रेलवे डिपो या वर्कशॉप में पहुँचती है, तो उसकी गुणवत्ता और मात्रा का निरीक्षण किया जाता है। निरीक्षण संतोषजनक होने पर Goods Receipt Note (GRN) तैयार किया जाता है। यह GRN लेखा प्रणाली में सामग्री प्राप्ति का वैध प्रमाण होता है और आगे के रिकॉर्ड के लिए आधार प्रदान करता है।

3. भंडारण (Storage)

प्राप्त सामग्री को व्यवस्थित रूप से सुरक्षित रखना भी स्टोर प्रबंधन का प्रमुख कार्य है। इसके लिए डिपो और वेयरहाउस में Bin System अपनाया जाता है, जिसमें प्रत्येक वस्तु का अलग स्थान निर्धारित होता है। भंडारण के दौरान अग्नि सुरक्षा, नमी नियंत्रण और चोरी से बचाव जैसी सावधानियाँ भी बरती जाती हैं ताकि सामग्री लंबे समय तक उपयोगी बनी रहे।

4. निर्गमन (Issue)

जब किसी विभाग को सामग्री की आवश्यकता होती है, तो उसकी पूर्ति स्टोर प्रबंधन द्वारा की जाती है। सामग्री निर्गमन की प्रक्रिया Issue Voucher (IV) के आधार पर की जाती है, जिससे यह दर्ज होता है कि किस विभाग ने कितनी मात्रा में और किस प्रयोजन हेतु सामग्री प्राप्त की। यह व्यवस्था संसाधनों के न्यायसंगत वितरण और पारदर्शिता को सुनिश्चित करती है।

5. स्टॉक सत्यापन (Stock Verification)

स्टॉक का समय-समय पर सत्यापन आवश्यक है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि अभिलेखों में दर्ज सामग्री वास्तव में उपलब्ध है। इसके लिए रेलवे में Annual Verification तथा Surprise Checks किए जाते हैं। यह प्रक्रिया गड़बड़ियों और अनियमितताओं पर तुरंत नियंत्रण करने का साधन है।

6. निस्तारण (Scrap Disposal)

रेलवे में उपयोग के बाद बड़ी मात्रा में स्क्रैप और अनुपयोगी सामग्री उत्पन्न होती है। इसे व्यवस्थित रूप से निस्तारित करना आवश्यक है। स्टोर प्रबंधन के अंतर्गत इसका निपटान मुख्यतः E-Auction के माध्यम से किया जाता है। यह प्रक्रिया न केवल पारदर्शी है बल्कि रेलवे को अतिरिक्त राजस्व भी उपलब्ध कराती है।

मुख्य लेखा दस्तावेज़ (Main Documents of Stores Accounting)

1. बिन कार्ड (Bin Card)

बिन कार्ड स्टोर लेखा का सबसे बुनियादी और महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ है। यह प्रत्येक सामग्री के भंडारण स्थान (Bin) पर रखा जाता है और उसमें उस सामग्री की प्राप्ति, निर्गमन और शेष स्टॉक की जानकारी दर्ज की जाती है। यह कार्ड वास्तविक स्टॉक का त्वरित संकेतक होता है और डिपो कर्मचारियों को तुरंत यह जानकारी देता है कि उस समय किसी वस्तु की कितनी मात्रा उपलब्ध है।

2. स्टोर्स लेजर (Stores Ledger)

स्टोर्स लेजर एक विस्तृत लेखा अभिलेख है, जिसे प्रायः खातों के विभाग द्वारा संधारित किया जाता है। इसमें प्रत्येक वस्तु की सभी प्रविष्टियाँ जैसे प्राप्ति, निर्गमन, मूल्य और शेष स्टॉक का विवरण होता है। स्टोर्स लेजर का उद्देश्य वित्तीय नियंत्रण स्थापित करना और स्टॉक स्तर की समग्र स्थिति को स्पष्ट करना है।

3. गुड्स रिसीप्ट नोट (Goods Receipt Note – GRN)

जब भी कोई सामग्री आपूर्तिकर्ता से रेलवे के डिपो में आती है और निरीक्षण के बाद उसे स्वीकार कर लिया जाता है, तो Goods Receipt Note (GRN) तैयार किया जाता है। यह नोट उस सामग्री के प्राप्त होने का आधिकारिक प्रमाण होता है और आगे की लेखा प्रविष्टियों का आधार भी बनता है।

4. इश्यू वाउचर (Issue Voucher – IV)

जब भी कोई सामग्री किसी विभाग को निर्गमित की जाती है, तो उसके लिए Issue Voucher (IV) तैयार किया जाता है। इस दस्तावेज़ में निर्गमित सामग्री का विवरण, मात्रा, विभाग का नाम और निर्गमन की तिथि दर्ज होती है। यह वाउचर जवाबदेही सुनिश्चित करता है और भविष्य के लिए एक वैध रिकॉर्ड उपलब्ध कराता है।

5. रिटर्न नोट (Return Note)

कभी-कभी विभाग द्वारा उपयोग न होने के कारण सामग्री वापस स्टोर में जमा की जाती है। ऐसी स्थिति में Return Note तैयार किया जाता है। इससे स्टॉक स्तर में संशोधन होता है और यह सुनिश्चित होता है कि लौटाई गई सामग्री सही ढंग से दर्ज हो।

मूल्य निर्धारण पद्धतियाँ (Valuation Methods)

1. FIFO (First In, First Out)

इस पद्धति के अंतर्गत पहले प्राप्त की गई सामग्री को सबसे पहले निर्गमित माना जाता है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि पुराना स्टॉक पहले खप जाए और सामग्री की गुणवत्ता पर असर न पड़े। रेलवे में यह पद्धति प्रायः नाशवान या समय-सीमा आधारित वस्तुओं के लिए उपयोगी होती है।

2. LIFO (Last In, First Out)

इस विधि में हाल ही में प्राप्त की गई सामग्री को पहले निर्गमित माना जाता है। यह पद्धति प्रायः तब उपयोगी होती है जब वस्तुओं की कीमतें लगातार बढ़ रही हों और वास्तविक लागत को दर्शाना आवश्यक हो। हालाँकि रेलवे में इसका प्रयोग सीमित रूप से किया जाता है।

3. औसत लागत पद्धति (Average Cost Method)

इस पद्धति में किसी वस्तु की कीमत उस वस्तु की सभी प्राप्तियों की औसत लागत के आधार पर तय की जाती है। यह सरल और व्यावहारिक तरीका है, क्योंकि इसमें मूल्य निर्धारण की जटिलता कम होती है।

4. भारित औसत लागत पद्धति (Weighted Average Method)

इस पद्धति में प्रत्येक प्राप्ति की मात्रा और उसकी लागत को ध्यान में रखकर औसत लागत निकाली जाती है। यह विधि अधिक सटीक है और रेलवे जैसी बड़ी संस्था के लिए उपयुक्त है, क्योंकि इसमें विभिन्न दरों पर प्राप्त सामग्री का सही-सही मूल्यांकन संभव होता है।

इन्वेंट्री नियंत्रण तकनीकें (Inventory Control Techniques)

1. एबीसी विश्लेषण (ABC Analysis)

इस तकनीक में वस्तुओं को उनकी लागत और महत्त्व के आधार पर तीन श्रेणियों – A, B और C में बाँटा जाता है। A श्रेणी की वस्तुएँ महँगी और महत्वपूर्ण होती हैं, जिन पर कड़ा नियंत्रण रखा जाता है। B श्रेणी की वस्तुओं पर मध्यम स्तर का और C श्रेणी की वस्तुओं पर सामान्य नियंत्रण रखा जाता है।

2. वीईडी विश्लेषण (VED Analysis)

इसमें वस्तुओं को उनकी महत्त्वपूर्णता के आधार पर Vital (अत्यावश्यक), Essential (आवश्यक) और Desirable (वांछनीय) श्रेणियों में विभाजित किया जाता है। रेलवे में सुरक्षा संबंधी वस्तुएँ प्रायः Vital श्रेणी में आती हैं।

3. न्यूनतम, अधिकतम और पुनः आदेश स्तर (Minimum, Maximum and Re-order Level)

इस तकनीक में प्रत्येक वस्तु के लिए न्यूनतम स्तर, अधिकतम स्तर और पुनः आदेश स्तर तय किया जाता है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि न तो वस्तुओं की कमी हो और न ही अतिरिक्त भंडारण के कारण पूँजी व्यर्थ फँसे।

4. जस्ट-इन-टाइम (Just-in-Time – JIT)

इस पद्धति में वस्तुएँ तभी खरीदी और प्राप्त की जाती हैं जब उनकी आवश्यकता होती है। इससे भंडारण लागत कम होती है और पूँजी का उपयोग अधिक प्रभावी ढंग से होता है।

5. आर्थिक आदेश मात्रा (Economic Order Quantity – EOQ)

यह पद्धति गणितीय सूत्र पर आधारित है, जिसके द्वारा यह तय किया जाता है कि किसी वस्तु की कितनी मात्रा एक बार में मंगाई जाए ताकि कुल लागत न्यूनतम हो। इसमें खरीद लागत और भंडारण लागत दोनों को ध्यान में रखा जाता है।

वित्तीय नियंत्रण (Financial Control in Stores)

1. आंतरिक लेखा परीक्षा और सत्यापन

स्टोर प्रबंधन में आंतरिक लेखा परीक्षा और सत्यापन अत्यंत आवश्यक है। इसके माध्यम से सामग्री की उपलब्धता और अभिलेखों की शुद्धता की जाँच की जाती है।

2. लेजर नियंत्रण (Ledger Control)

बिन कार्ड और स्टोर्स लेजर के बीच नियमित मिलान करके यह सुनिश्चित किया जाता है कि अभिलेखों में कोई अंतर न हो।

3. स्क्रैप से राजस्व सृजन

अनुपयोगी सामग्री और स्क्रैप का पारदर्शी निस्तारण रेलवे के लिए अतिरिक्त राजस्व का स्रोत बनता है।

4. खातों की स्वीकृति (Accounts Department’s Concurrence)

प्रत्येक बड़े क्रय प्रस्ताव पर लेखा विभाग की सहमति आवश्यक होती है। इससे वित्तीय अनुशासन बनाए रखने और अनावश्यक व्यय से बचने में मदद मिलती है।

डिजिटलीकरण, सुधार एवं चुनौतियाँ (Digitisation, Reforms & Challenges)

भारतीय रेल ने स्टोर लेखा और भंडार प्रबंधन में दक्षता, पारदर्शिता और आधुनिकता लाने के लिए हाल के वर्षों में कई तकनीकी और प्रबंधकीय सुधार लागू किए हैं। इनमें सबसे प्रमुख है IREPS (Indian Railway E-Procurement System) और GeM (Government e-Marketplace) का उपयोग, जिसके माध्यम से ई-टेंडरिंग और पारदर्शी खरीद सुनिश्चित की जा रही है। इसने प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दिया है और भ्रष्टाचार तथा अनावश्यक विलंब पर नियंत्रण पाया है।

Depot Online System (DOS) ने डिपो स्तर पर रियल-टाइम स्टॉक जानकारी उपलब्ध कराई है, जिससे सामग्री की उपलब्धता और निर्गमन पर निगरानी आसान हो गई है। वित्तीय पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए E-Office और PFMS (Public Financial Management System) Integration लागू किया गया है। वहीं, Barcode और RFID Technology के प्रयोग से सामग्री की आवाजाही और ट्रैकिंग को और सटीक बनाया जा रहा है।

इन तकनीकी पहलों के अतिरिक्त, Data Analytics के माध्यम से Slow Moving और Fast Moving Items की पहचान कर बेहतर इन्वेंट्री योजना बनाई जा रही है। कुछ ज़ोनल रेलवेज़ में SAP/ERP Systems का उपयोग भी शुरू किया गया है, जो Inventory Control और वित्तीय एकीकरण में सहायता प्रदान करते हैं। साथ ही, Green Procurement और Green Warehousing जैसी पहलें पर्यावरणीय स्थिरता की दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं।

इन उपलब्धियों के बावजूद, कई चुनौतियाँ अब भी बनी हुई हैं। कई बार अतिशय भंडारण या भंडार की कमी (Overstocking/Stock-out) की स्थिति सामने आती है। Procurement Delays (क्रय में विलंब) के कारण आवश्यक सामग्री समय पर उपलब्ध नहीं हो पाती। तकनीकी उन्नयन के कारण Obsolete Inventory (अप्रचलित स्टॉक) का प्रबंधन भी एक समस्या है। इसी प्रकार, Pilferage और Material Loss (चोरी और हानि) बड़े पैमाने पर भंडारण में एक गंभीर चुनौती है।

इसके अतिरिक्त, Forecasting और Demand Planning की कमी के कारण मांग का सटीक अनुमान नहीं लगाया जा पाता, जिससे कार्यकुशलता प्रभावित होती है। Scrap Disposal में पारदर्शिता और समयबद्धता भी सुनिश्चित करना आवश्यक है, क्योंकि इसमें राजस्व सृजन की बड़ी संभावना है।

इन चुनौतियों के समाधान हेतु हाल के वर्षों में कई सुधार किए गए हैं। GeM Portal Integration ने राष्ट्रीय स्तर पर खरीद प्रक्रिया को और अधिक पारदर्शी बनाया है। Digital Ledger को IPAS (Integrated Payroll & Accounting System) और ERP Platforms से जोड़कर लेखा प्रणाली को डिजिटलीकृत किया गया है। MSME प्रोत्साहन हेतु Vendor Development Programmes चलाए जा रहे हैं, जिससे स्थानीय उद्योगों और आपूर्तिकर्ताओं को अवसर मिल रहे हैं।

रेलवे ने Green Procurement, Paperless Transactions और Cashless Transactions जैसे कदम भी उठाए हैं, जो न केवल पारदर्शिता को मजबूत करते हैं बल्कि पर्यावरणीय स्थिरता और प्रशासनिक दक्षता को भी बढ़ावा देते हैं। इस प्रकार, डिजिटलीकरण, सुधार और चुनौतियाँ – तीनों पहलू मिलकर भारतीय रेल की स्टोर लेखा प्रणाली के गतिशील स्वरूप को दर्शाते हैं।

निगरानी एवं लेखा-परीक्षण (Audit & Oversight)

भारतीय रेल जैसी विशाल और जटिल संगठनात्मक संरचना में स्टोर लेखा प्रणाली की सफलता मुख्य रूप से उसके निगरानी और लेखा-परीक्षण तंत्र पर निर्भर करती है।

बाहरी स्तर पर, C&AG (Comptroller & Auditor General of India) द्वारा लेखा-परीक्षण किया जाता है। यह ऑडिट रेलवे की वित्तीय पारदर्शिता और संसाधन प्रबंधन की निष्पक्ष समीक्षा करता है।

आंतरिक स्तर पर, Internal Audit एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके अंतर्गत Ledger Balance और Physical Stock का मिलान किया जाता है ताकि किसी भी प्रकार की विसंगति को समय रहते पकड़ा जा सके।

इसके अतिरिक्त, रेलवे में Vigilance Organisation सक्रिय है, जो निविदा प्रक्रिया, खरीद निर्णयों और संविदात्मक दायित्वों की निगरानी करती है। यह तंत्र सुनिश्चित करता है कि क्रय प्रक्रिया निष्पक्ष, प्रतिस्पर्धी और भ्रष्टाचार-मुक्त हो।

अंत में, PAC (Public Accounts Committee) और Parliamentary Oversight के माध्यम से संसद स्तर पर भी स्टोर लेखा और भंडार प्रबंधन की समीक्षा की जाती है। यह निगरानी तंत्र जवाबदेही, पारदर्शिता और सुशासन की गारंटी प्रदान करता है।

केस स्टडी – RFID आधारित स्टोर प्रबंधन

उत्तर रेलवे के एक बड़े डिपो में हाल ही में RFID (Radio Frequency Identification) Technology आधारित स्टॉक ट्रैकिंग प्रणाली लागू की गई। इस पहल ने स्टोर प्रबंधन में कई सकारात्मक परिणाम दिए। सबसे पहले, Material Tracking तेज़ और सटीक हो गई, जिससे सामग्री की आवाजाही और उपलब्धता पर निरंतर नज़र रखी जा सकी।

दूसरे, RFID प्रणाली ने Pilferage और अनधिकृत उपयोग पर नियंत्रण स्थापित करने में मदद की, क्योंकि प्रत्येक वस्तु का डिजिटल रिकॉर्ड स्वतः अपडेट होता रहा। तीसरे, यह प्रणाली Depot Online System (DOS) के साथ एकीकृत की गई, जिसके परिणामस्वरूप रियल-टाइम स्टॉक जानकारी उपलब्ध होना संभव हुआ।

इसके अतिरिक्त, Scrap Disposal प्रक्रिया अधिक पारदर्शी हो गई, क्योंकि RFID टैगिंग ने स्क्रैप सामग्री की पहचान और निस्तारण की प्रत्येक अवस्था को डिजिटल रूप से दर्ज किया।

यह केस स्टडी इस तथ्य को प्रमाणित करती है कि रेलवे में डिजिटल इन्वेंट्री सिस्टम न केवल दक्षता और पारदर्शिता को बढ़ावा देता है, बल्कि लागत नियंत्रण और संसाधनों के बेहतर उपयोग को भी संभव बनाता है।

निष्कर्ष (Conclusion)

स्टोर लेखा एवं भंडार प्रबंधन भारतीय रेल के वित्त और आपूर्ति शृंखला का रणनीतिक स्तंभ (Strategic Pillar) है। यह केवल लागत नियंत्रण का साधन नहीं, बल्कि संचालन की सततता, गुणवत्ता और पारदर्शिता का आधार भी है।

भविष्य में AI आधारित Forecasting, Blockchain Technology, Cloud-based Integrated Systems और ERP Platforms के माध्यम से यह प्रणाली और भी आधुनिक एवं विश्वस्तरीय बनेगी। साथ ही, Green Warehousing और Paperless Transactions जैसी पहल इसे सतत (Sustainable) बनाएँगी।

इस प्रकार, यह कहा जा सकता है कि भारतीय रेल में स्टोर लेखा और भंडार प्रबंधन न केवल प्रशासनिक प्रक्रिया है, बल्कि रेलवे की कार्यकुशलता, पारदर्शिता और वित्तीय स्थिरता का आधारभूत स्तंभ है।


 

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