अध्याय 6 बजटीय प्रक्रिया एवं अनुमोदन तंत्र (Budgetary Process & Approval Mechanism)

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अध्याय 6

बजटीय प्रक्रिया एवं अनुमोदन तंत्र (Budgetary Process & Approval Mechanism)


भारतीय रेल विश्व की सबसे बड़ी सरकारी स्वामित्व वाली परिवहन प्रणाली है। इसकी संरचना, संगठन और वित्तीय प्रबंधन इतना विशाल और जटिल है कि इसे लंबे समय तक संसद में अलग “रेलवे बजट” के रूप में प्रस्तुत किया जाता रहा। हालाँकि वर्ष 2017 में इसे सामान्य बजट में विलय कर दिया गया, फिर भी रेलवे की बजटीय प्रक्रिया की विशिष्टता आज भी बनी हुई है। इसका कारण यह है कि भारतीय रेल एक ओर सरकारी विभाग है तो दूसरी ओर एक वाणिज्यिक उद्यम भी है। इस दोहरे स्वरूप के कारण इसके वित्तीय प्रबंधन और बजट प्रणाली में सरकारी लेखा नियम और वाणिज्यिक लेखांकन सिद्धांत दोनों का समन्वय दिखाई देता है।


रेलवे बजट केवल आय और व्यय का लेखा-जोखा नहीं है, बल्कि यह संगठन की प्राथमिकताओं, नीतिगत दिशा, योजनाओं और संचालन की दक्षता का प्रतिबिंब है। यह संसदीय उत्तरदायित्व, वित्तीय अनुशासन और योजनाबद्ध विकास का आधार है। इस अध्याय में हम भारतीय रेल की बजटीय प्रक्रिया, उसके चरण, ढाँचे, अनुमोदन तंत्र और उससे जुड़ी चुनौतियों एवं सुधारों का विस्तृत अध्ययन करेंगे।

1. बजटीय प्रक्रिया की परिभाषा एवं महत्व

बजटीय प्रक्रिया वह प्रणाली है जिसके अंतर्गत किसी संगठन की आगामी अवधि के लिए आय और व्यय का अनुमान लगाया जाता है और उपलब्ध संसाधनों का उचित आवंटन किया जाता है। यह केवल संख्यात्मक अनुमान नहीं है, बल्कि संगठन के कार्यकलापों की दिशा निर्धारित करने वाला दस्तावेज़ है।


भारतीय रेल के संदर्भ में बजटीय प्रक्रिया का महत्व और भी बढ़ जाता है। यह वित्तीय अनुशासन बनाए रखने, संसदीय उत्तरदायित्व सुनिश्चित करने, संसाधनों के सर्वोत्तम उपयोग, योजनाबद्ध विकास, पारदर्शिता और कार्यकुशलता के लिए अनिवार्य है। बजट यह स्पष्ट करता है कि आने वाले वर्ष में रेलवे किस दिशा में आगे बढ़ेगा, किन क्षेत्रों में निवेश करेगा और किस प्रकार अपने राजस्व और व्यय का संतुलन बनाए रखेगा।


2. रेलवे बजटीय ढाँचा

भारतीय रेल का बजटीय ढाँचा बहु-स्तरीय और जटिल है। इसका निर्माण और अनुमोदन कई चरणों और संस्थाओं के सहयोग से होता है। इसमें डिवीजन, ज़ोनल मुख्यालय, रेलवे बोर्ड, वित्त मंत्रालय और अंततः संसद तक की भागीदारी होती है।


बजट तैयार करने का मुख्य दायित्व वित्त आयुक्त (Financial Commissioner, Railways) के अंतर्गत होता है। डिवीजन स्तर पर प्रारंभिक अनुमान तैयार किए जाते हैं। इन अनुमानों को ज़ोनल मुख्यालय में संकलित कर समेकित किया जाता है। ज़ोनल स्तर पर जनरल मैनेजर के नेतृत्व में यह प्रक्रिया संपन्न होती है। इसके बाद रेलवे बोर्ड सभी ज़ोनल और उत्पादन इकाइयों से प्राप्त अनुमानों का समेकन करता है और उन्हें वित्त मंत्रालय व नीति आयोग के साथ समन्वय करके अंतिम रूप देता है। अंततः संसद में बजट प्रस्तुत किया जाता है और संसदीय समितियों द्वारा इसकी समीक्षा की जाती है।


3. बजट निर्माण के चरण

प्रारंभिक चरण - प्रत्येक वर्ष जुलाई-अगस्त में रेलवे बोर्ड बजट परिपत्र जारी करता है, जिसे सामान्यतः “बजट कॉल” कहा जाता है। इस परिपत्र में सभी ज़ोनल रेलों और उत्पादन इकाइयों को यह निर्देश दिए जाते हैं कि वे अपनी अनुमानित आय और व्यय प्रस्तुत करें। इन अनुमानों में यात्री आय, मालभाड़ा, संचालन व्यय, पेंशन, रखरखाव, योजना व्यय तथा अन्य आय-व्यय शामिल होते हैं। इस चरण में विभिन्न विभाग आपसी परामर्श से अपने अनुमान तैयार करते हैं और उन्हें डिवीजनल स्तर पर संकलित किया जाता है।

संकलन चरण - डिवीजनल स्तर पर तैयार किए गए अनुमानों को ज़ोनल मुख्यालय में भेजा जाता है। वहाँ जनरल मैनेजर के नेतृत्व में सभी विभागों के अनुमानों को समेकित कर ज़ोन का समेकित बजट तैयार किया जाता है। इसके बाद सभी ज़ोनल बजट रेलवे बोर्ड को भेजे जाते हैं, जहाँ उनका पुनः समेकन किया जाता है।

समीक्षा और संशोधन चरण - रेलवे बजट निर्माण में समीक्षा और संशोधन की प्रक्रिया अत्यंत महत्वपूर्ण है। अगस्त समीक्षा में पहली तिमाही के वास्तविक आँकड़ों की तुलना अनुमानों से की जाती है और आवश्यकतानुसार संशोधन किया जाता है। नवम्बर समीक्षा के समय वर्ष की शेष अवधि के लिए Revised Estimates और आगामी वर्ष के लिए Budget Estimates तैयार किए जाते हैं। फरवरी में अंतिम संशोधन किया जाता है, जिसमें Appropriation का अंतिम निर्धारण किया जाता है।

अंतिम चरण - रेलवे बोर्ड सभी संशोधनों के बाद अंतिम मसौदा तैयार करता है। इसे रेल मंत्री द्वारा अनुमोदित किया जाता है और सामान्य बजट के हिस्से के रूप में संसद में प्रस्तुत किया जाता है। संसद की स्थायी समिति इस पर विस्तृत विचार करती है और लोकसभा में अनुदान की माँग पर मतदान होता है। इसके बाद वित्त विधेयक पारित होने पर बजट को वैधानिक मान्यता मिल जाती है।

4. बजट के घटक

भारतीय रेल का बजट मुख्यतः चार भागों में विभाजित होता है। पहला भाग राजस्व बजट होता है, जिसमें यात्री किराया, मालभाड़ा और अन्य स्रोतों से होने वाली आय का अनुमान प्रस्तुत किया जाता है। दूसरा भाग व्यय बजट होता है, जिसमें वेतन, पेंशन, रखरखाव, ऊर्जा लागत और संचालन से जुड़े अन्य खर्च शामिल होते हैं। तीसरा भाग पूँजीगत बजट होता है, जिसके अंतर्गत नई लाइनों का निर्माण, विद्युतीकरण, रोलिंग स्टॉक की खरीद और आधुनिकीकरण परियोजनाएँ आती हैं। चौथा भाग कार्य योजना बजट होता है, जिसमें स्वीकृत परियोजनाओं की विस्तृत सूची और उनके लिए प्रस्तावित व्यय का विवरण होता है।

5. अतिरिक्त प्रावधान और पुनः विनियोजन

अक्सर ऐसा होता है कि किसी विशेष मद में स्वीकृत राशि पर्याप्त नहीं होती। ऐसे में Supplementary Grants की आवश्यकता पड़ती है, जिसके लिए संसद से अतिरिक्त स्वीकृति लेनी पड़ती है। दूसरी ओर, यदि किसी एक मद में बचत हो और दूसरे में अधिक आवश्यकता हो तो Re-appropriation के माध्यम से राशि का पुनर्विनियोजन किया जाता है। यह प्रक्रिया वित्तीय अनुशासन बनाए रखने और संसाधनों के प्रभावी उपयोग के लिए आवश्यक है।

6. Appropriation Accounts और संसदीय नियंत्रण

वर्षांत में वास्तविक व्यय की तुलना स्वीकृत Appropriation से की जाती है। यह प्रक्रिया Appropriation Accounts कहलाती है। इन खातों की समीक्षा भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (C&AG) तथा संसद की लोक लेखा समिति द्वारा की जाती है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि किस मद में बचत हुई और कहाँ अधिक व्यय हुआ। यह प्रक्रिया रेलवे की वित्तीय जवाबदेही और पारदर्शिता को मजबूत करती है।

7. बजटीय नियंत्रण और अनुशासन

रेलवे में हर स्तर पर खर्च की निगरानी की जाती है। वित्त आयुक्त और वित्तीय सलाहकार व्यय की समीक्षा करते हैं। रेलवे बोर्ड, संसद और लोक लेखा समिति सर्वोच्च नियंत्रण सुनिश्चित करते हैं। इस प्रकार रेलवे का बजट केवल अनुमान तक सीमित नहीं रहता, बल्कि इसके क्रियान्वयन और नियंत्रण पर भी विशेष बल दिया जाता है।

8. आधुनिक सुधार, चुनौतियाँ और भविष्य की दिशा

भारतीय रेल ने समय-समय पर अपनी बजटीय प्रक्रिया को अधिक वैज्ञानिक और पारदर्शी बनाने के लिए अनेक सुधार किए हैं। Outcome Budgeting की शुरुआत ने व्यय को केवल संख्यात्मक राशि तक सीमित न रखकर वास्तविक परिणामों पर आधारित कर दिया। Performance Budgeting ने लक्ष्यों और उपलब्धियों की तुलना द्वारा वित्तीय दक्षता का आकलन संभव बनाया। Zero Based Budgeting ने यह सुनिश्चित किया कि प्रत्येक व्यय मद को शून्य से मूल्यांकित किया जाए और केवल आवश्यक मदों पर ही खर्च किया जाए। डिजिटल युग में IPAS और IFMS जैसे टूल्स ने बजट निर्माण और निगरानी को अधिक तेज़ और पारदर्शी बनाया है।


इसके साथ ही रेलवे ने पर्यावरणीय दृष्टिकोण से Green Budgeting और Green Financing की दिशा में कदम बढ़ाए हैं, ताकि परियोजनाओं का मूल्यांकन उनके कार्बन फुटप्रिंट और पर्यावरणीय प्रभाव के आधार पर भी किया जा सके। हालाँकि, चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं। बढ़ते राजस्व व्यय, विशेषकर वेतन, पेंशन और ऊर्जा लागत, रेलवे की वित्तीय स्थिति पर भारी दबाव डालते हैं। यात्री किराए में वृद्धि एक राजनीतिक रूप से संवेदनशील मुद्दा है, जिससे राजस्व वृद्धि सीमित हो जाती है। अधोसंरचना परियोजनाओं के लिए भारी पूँजीगत निवेश की आवश्यकता है, जबकि निजी निवेश और PPP मॉडल के क्रियान्वयन में कई बार कठिनाइयाँ आती हैं।


इन चुनौतियों के बावजूद रेलवे ने अनेक सफल उदाहरण भी प्रस्तुत किए हैं। जैसे मालभाड़ा दरों में सुधार कर अतिरिक्त राजस्व अर्जित किया गया और उसका उपयोग माल ढुलाई गलियारों और स्टेशन आधुनिकीकरण में किया गया। इसी प्रकार यात्री सुविधाओं के लिए आवंटित राशि का प्रभावी उपयोग कर यात्रियों को आधुनिक सेवाएँ प्रदान की गईं।


भविष्य की दिशा में रेलवे अपनी बजटीय प्रक्रिया को और अधिक समेकित, तकनीकी और स्थायी बनाने की ओर अग्रसर है। Integrated Transport Budget की अवधारणा के अंतर्गत रेलवे, सड़क, बंदरगाह और हवाई अड्डों की परियोजनाओं का समन्वय कर मल्टी-मॉडल विकास सुनिश्चित किया जाएगा। Outcome-Linked Financing के माध्यम से केवल स्वीकृति पर नहीं बल्कि वास्तविक परिणामों पर आधारित फंडिंग की जाएगी। निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाने के लिए निवेश के नए मॉडल अपनाए जा रहे हैं। साथ ही, Green Financing जैसे नवीकरणीय ऊर्जा और कार्बन-न्यूट्रल परियोजनाओं को बढ़ावा दिया जा रहा है।


निष्कर्ष (Conclusion)

भारतीय रेल की बजटीय प्रक्रिया एक जटिल, बहु-स्तरीय और उत्तरदायी प्रणाली है। यह न केवल आय-व्यय का अनुमान है, बल्कि संगठन की नीतिगत प्राथमिकताओं, संसदीय उत्तरदायित्व और राष्ट्रीय विकास की दिशा का दर्पण है। Outcome Budgeting, Zero Based Budgeting और Digital Tools जैसे आधुनिक सुधारों ने इसे और अधिक पारदर्शी और दक्ष बना दिया है। चुनौतियाँ भले ही बड़ी हों, परन्तु भारतीय रेल का बजटीय ढाँचा निरंतर विकसित हो रहा है और Integrated, Technological तथा Sustainable दिशा में आगे बढ़ रहा है।

 

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