Annexure – X - भारतीय रेल में क्रय प्रक्रिया (Procurement Process in Indian Railways)

 

Annexure – X

भारतीय रेल में क्रय प्रक्रिया (Procurement Process in Indian Railways)


भारतीय रेल केवल देश का सबसे बड़ा नियोक्ता (Employer) ही नहीं है बल्कि भारत सरकार का सबसे बड़ा उपभोक्ता (Consumer) भी है। प्रत्येक वर्ष रेलवे अरबों रुपये मूल्य की सामग्री (Stores), उपकरण (Equipment), रोलिंग स्टॉक (Rolling Stock) और सेवाओं (Services) की खरीद करता है। इस संपूर्ण प्रक्रिया को क्रय प्रक्रिया (Procurement Process) कहा जाता है और यह Indian Railway Stores Code, Purchase Manual, Finance Code तथा General Financial Rules (GFR) के अधीन संचालित होती है।

परिभाषा (Definition)

क्रय प्रक्रिया (Procurement Process) से आशय उस समग्र प्रणाली से है जिसके अंतर्गत भारतीय रेलवे अपनी आवश्यक वस्तुओं, सामग्रियों और सेवाओं की योजना, निविदा, मूल्यांकन, स्वीकृति, आपूर्ति और भुगतान करती है। इस प्रक्रिया में प्रत्येक चरण का अपना विशेष महत्व है। सबसे पहले, योजना (Planning) के अंतर्गत यह सुनिश्चित किया जाता है कि किन वस्तुओं और सेवाओं की आवश्यकता है और उन्हें किस समय पर उपलब्ध कराना है। इसके बाद, निविदा (Tendering) प्रक्रिया के द्वारा विभिन्न आपूर्तिकर्ताओं से प्रतिस्पर्धात्मक प्रस्ताव आमंत्रित किए जाते हैं। प्रस्तावों के प्राप्त होने के बाद मूल्यांकन (Evaluation) किया जाता है, ताकि गुणवत्ता, लागत और समय सीमा के आधार पर सर्वोत्तम विकल्प चुना जा सके। इसके पश्चात् स्वीकृति (Acceptance) दी जाती है और आपूर्ति (Supply) की प्रक्रिया शुरू होती है। अंततः, पूरी प्रक्रिया के पूरा होने पर भुगतान (Payment) किया जाता है।

क्रय प्रक्रिया के चार मुख्य उद्देश्य हैं, जो इसकी सफलता और प्रभावशीलता सुनिश्चित करते हैं:

  • पारदर्शिता (Transparency): प्रक्रिया में सभी चरणों में स्पष्टता और खुलेपन को सुनिश्चित करना।
  • प्रतिस्पर्धा (Competition): विभिन्न आपूर्तिकर्ताओं को समान अवसर प्रदान करना, जिससे सर्वोत्तम मूल्य और गुणवत्ता सुनिश्चित हो सके।
  • लागत-प्रभावशीलता (Economy): सीमित संसाधनों का प्रभावी और विवेकपूर्ण उपयोग करना।
  • जवाबदेही (Accountability): हर निर्णय और कार्रवाई के लिए जिम्मेदारी तय करना और प्रक्रिया को नियंत्रित रखना।

क्रय की आवश्यकताएँ (Procurement Needs)

भारतीय रेलवे में खरीद की आवश्यकताएँ विभिन्न स्तरों पर उत्पन्न होती हैं। मुख्य रूप से इन्हें तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है:

  1. राजस्व व्यय (Revenue Expenditure): यह वे खर्चे हैं जो रेलवे के नियमित संचालन और रखरखाव के लिए किए जाते हैं। इनमें डीज़ल, लुब्रिकेंट्स, ट्रैक फिटिंग्स आदि शामिल हैं। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि रोजमर्रा की रेल संचालन प्रक्रिया बाधित न हो और सेवाएँ सुचारू रूप से चलती रहें।
  2. पूंजीगत व्यय (Capital Expenditure): यह खर्चे नए प्रोजेक्ट्स, परिसंपत्तियों (Assets) और आधुनिककरण के लिए किए जाते हैं। इसमें वैगन, विद्युत इंजन, विद्युतीकरण उपकरण आदि शामिल हैं। पूंजीगत व्यय का मुख्य उद्देश्य रेलवे के दीर्घकालीन विकास और बुनियादी ढांचे को सुदृढ़ बनाना है।
  3. आपातकालीन / आकस्मिक आवश्यकताएँ (Emergency/Contingency Needs): दुर्घटनाएँ, प्राकृतिक आपदाएँ या अचानक उत्पन्न हुई अनियमित परिस्थितियाँ जब होती हैं, तब इन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आपातकालीन खरीद की जाती है। इसका उद्देश्य है कि किसी भी अप्रत्याशित स्थिति में रेलवे संचालन और सुरक्षा प्रभावित न हो।

क्रय चक्र (Procurement Cycle)

क्रय प्रक्रिया एक व्यवस्थित चक्र का पालन करती है।

  • मांग प्रस्तुत करना (Indenting): उपयोगकर्ता विभाग (User Department) जैसे इंजीनियरिंग, मैकेनिकल, इलेक्ट्रिकल या सिग्नल एवं टेलीकॉम अपनी आवश्यकता प्रस्तुत करता है और सामग्री मांग पत्र (Material Demand Note – MDN) कंट्रोलर ऑफ़ स्टोर्स (COS) को भेजता है।
  • निविदा आमंत्रण (Tendering): COS कार्यालय आवश्यकता के अनुसार निविदा (Tender) जारी करता है, जो IREPS Portal (Indian Railway e-Procurement System) पर प्रकाशित की जाती है।
  • बोली प्रस्तुत करना (Bidding & Submission): विक्रेता (Vendors) ऑनलाइन तकनीकी (Technical) और वित्तीय (Financial) बोलियाँ जमा करते हैं।
  • बोली खोलना (Bid Opening): पहले तकनीकी बोलियों का मूल्यांकन होता है, योग्य पाए जाने पर उनकी वित्तीय बोलियाँ खोली जाती हैं।
  • मूल्यांकन एवं सिफ़ारिश (Evaluation & Recommendation): निविदा समिति (Tender Committee), जिसमें कार्यकारी अधिकारी (Executive), वित्त अधिकारी (Finance) और स्टोर्स/तकनीकी अधिकारी (Stores/Technical) होते हैं, तुलनात्मक विवरण (Comparative Statement – CS) तैयार करती है और सिफ़ारिश देती है।
  • स्वीकृति एवं क्रय आदेश (Acceptance & Purchase Order): स्वीकृति प्राधिकारी (Accepting Authority – COS/GM/Board) निर्णय लेकर खरीद आदेश (Purchase Order – PO) जारी करता है।
  • निरीक्षण एवं आपूर्ति (Inspection & Supply): आपूर्ति के समय RITES या संबंधित अधिकारी निरीक्षण करता है और वस्तु प्राप्ति पत्र (Goods Receipt Note – GRN) तैयार होता है।
  • भुगतान एवं समापन (Payment & Closure): बिल लेखा विभाग (Accounts Department) द्वारा पास होता है, भुगतान PFMS के माध्यम से ऑनलाइन किया जाता है और अंततः अनुबंध समापन (Contract Closure) किया जाता है।

निविदाओं के प्रकार (Tender Types in Indian Railways)

भारतीय रेल में विभिन्न परिस्थितियों के अनुसार कई प्रकार की निविदाएँ अपनाई जाती हैं।

  1. खुली निविदा (Open Tender – OT): सभी विक्रेताओं के लिए खुला; सर्वाधिक पारदर्शी प्रणाली।
  2. सीमित निविदा (Limited Tender – LT): केवल अनुमोदित विक्रेताओं को भेजी जाती है; मानकीकृत अथवा विशेषीकृत वस्तुओं हेतु।
  3. विशेष सीमित निविदा (Special Limited Tender – SLT): आपातकालीन आवश्यकता और सीमित समयावधि में।
  4. एकल निविदा (Single Tender – ST): केवल एक ही विक्रेता उपलब्ध होने पर, जैसे स्वामित्वाधिकार वाली सामग्री या तात्कालिक मरम्मत।
  5. PAC निविदा (Proprietary Article Certificate Tender): जब सामग्री केवल एक निर्माता द्वारा उपलब्ध हो, जैसे LHB कोच फिटिंग्स – M/s FIAT

निविदा समिति प्रणाली (Tender Committee System)

रेलवे क्रय में तीन सदस्यीय निविदा समिति गठित की जाती है जिसमें—

  • उपयोगकर्ता विभाग का कार्यकारी अधिकारी (Executive Officer)
  • स्टोर्स अधिकारी (Stores Officer – COS Representative)
  • वित्त अधिकारी (Finance Officer – Accounts Department)

शामिल होते हैं। यह समिति तुलनात्मक विवरण (Comparative Statement) का अध्ययन कर संयुक्त सिफ़ारिश (Joint Recommendation) देती है। अंतिम निर्णय स्वीकृति प्राधिकारी (Accepting Authority) द्वारा लिया जाता है।

वित्तीय सहमति (Finance Concurrence)

क्रय प्रक्रिया के प्रत्येक चरण में लेखा विभाग (Accounts Department) की सहमति (Vetting) आवश्यक होती है। वित्त अधिकारी यह सुनिश्चित करता है कि—

  • बजट प्रावधान (Budget Provision) उपलब्ध है,
  • दरें (Rates) वाजिब हैं,
  • निविदा नियमों का पालन हुआ है।

बिना वित्तीय सहमति (Finance Concurrence) के कोई भी क्रय वैध नहीं माना जाता।

शक्तियों का प्रत्यायोजन (Delegation of Powers)

मध्यम मूल्य के अनुबंधों की स्वीकृति COS या महाप्रबंधक (GM) द्वारा दी जाती है। उच्च मूल्य अथवा रणनीतिक अनुबंधों की स्वीकृति रेलवे बोर्ड (Railway Board) द्वारा की जाती है, जबकि मेगा क्रय (जैसे 1000 विद्युत इंजन – Alstom, मधेपुरा) रेल मंत्रालय (Ministry of Railways) और मंत्रिमंडल (Cabinet) स्तर पर स्वीकृत होते हैं।

डिजिटल क्रय प्रणाली (Digital Procurement – IREPS & GeM)

रेलवे ने हाल के वर्षों में डिजिटल माध्यम से क्रय प्रक्रिया को सुदृढ़ किया है। IREPS (Indian Railway e-Procurement System) के माध्यम से खुली निविदाएँ, ई-नीलामी (e-Auctions) और कबाड़ की नीलामी की जाती है। GeM (Government e-Marketplace) पोर्टल पर ₹25,000 तक की प्रत्यक्ष खरीद, ई-बिडिंग (e-Bidding) और रिवर्स ऑक्शन (Reverse Auction) की सुविधा है। इन दोनों पोर्टलों ने क्रय प्रक्रिया को पारदर्शी और प्रतिस्पर्धात्मक रूप से अधिक प्रभावी बनाया है।

व्यावहारिक उदाहरण (Practical Example)

मान लीजिए, पूर्वी रेलवे (Eastern Railway) को 5000 कंक्रीट स्लीपरों की खरीद करनी है। इंजीनियरिंग विभाग अपनी मांग COS कार्यालय को भेजता है। COS कार्यालय IREPS Portal पर खुली निविदा जारी करता है। लगभग दस विक्रेता अपनी बोलियाँ प्रस्तुत करते हैं। निविदा समिति (Tender Committee) बोलियों का मूल्यांकन करती है और न्यूनतम उत्तरदायी बोलीदाता (Lowest Responsive Bidder – L1) को खरीद आदेश जारी किया जाता है। तत्पश्चात आपूर्ति, निरीक्षण और भुगतान की प्रक्रिया पूर्ण होती है।

चुनौतियाँ (Challenges in Procurement)

क्रय प्रक्रिया में कई व्यावहारिक चुनौतियाँ होती हैं। इनमें प्रमुख हैं—क्रय में विलंब (Procurement Delays) जिसके कारण परियोजनाओं में देरी होती है; कुछ सीमित विक्रेताओं पर अत्यधिक निर्भरता (Over-Dependence on Limited Vendors); विक्रेताओं के बीच गठजोड़ (Cartelization) का जोखिम; गुणवत्ता नियंत्रण की समस्याएँ; तथा कानूनी विवाद और पंचाट (Arbitration Cases)

हाल के सुधार (Recent Reforms)

क्रय प्रक्रिया में सुधार हेतु कई कदम उठाए गए हैं। इनमें 100% ई-प्रोक्योरमेंट (e-Procurement) की अनिवार्यता, परिभाषित सीमा से ऊपर के क्रय के लिए GeM प्लेटफ़ॉर्म का उपयोग, प्रतिस्पर्धी मूल्य निर्धारण (Competitive Pricing) के लिए रिवर्स ऑक्शन (Reverse Auction), MSME के लिए विक्रेता विकास कार्यक्रम (Vendor Development Programmes), तथा ई-बिल प्रसंस्करण (e-Bill Processing) शामिल हैं, जिससे भुगतान प्रणाली पूरी तरह कागज़ रहित (Paperless) हो गई है।

लेखा-परीक्षा एवं निगरानी (Audit & Oversight)

क्रय प्रक्रिया की पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए लेखा-परीक्षा एवं निगरानी की बहुस्तरीय प्रणाली है। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (C&AG) यह जाँच करता है कि क्रय नियमों का पालन हुआ या नहीं। सतर्कता संगठन (Vigilance) निविदाओं की पारदर्शिता की समीक्षा करता है। संसद में पूछे जाने वाले प्रश्न और लोक लेखा समिति (PAC) के माध्यम से प्रमुख क्रयों की जवाबदेही तय की जाती है।

निष्कर्ष (Conclusion)

क्रय प्रक्रिया (Procurement Process) भारतीय रेल का जीवन-रेखा कार्य (Lifeline Function) है, क्योंकि यही रेलवे संचालन और परियोजनाओं की गति निर्धारित करती है। इसकी प्रमुख विशेषताएँ हैं—मांग से लेकर निविदा, मूल्यांकन, स्वीकृति, आपूर्ति और भुगतान तक का स्पष्ट चक्र; विभिन्न प्रकार की निविदाएँ; वित्तीय सहमति की अनिवार्यता; डिजिटल साधनों का उपयोग; तथा निगरानी और लेखा-परीक्षा के प्रभावी तंत्र। एक पारदर्शी, प्रतिस्पर्धी और डिजिटल क्रय प्रणाली रेलवे को न केवल अधिक किफ़ायती (Economic) बनाती है बल्कि जनता और संसद के प्रति अधिक उत्तरदायी (Accountable) भी।

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